Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 48
________________ ४८ जिज्ञासा -समाधान- प्रश्नोत्तर धर्मोपदेश में प्रयुक्त और संशोधित विषय वस्तु का उपयुक्त अभिप्रायजिज्ञासा- भव संसार निवार के स्थान पर गुरू संसार निवार क्यों पढ़ना चाहिये? समाधान- तत्त्व मंगल में श्री ममल पाहुड़ जी ग्रंथ की पहली फूलना देव दिप्ति गाथा, तीसरी फूलना गुरू दिप्ति गाथा और पाँचवीं फूलना धर्म दिप्ति गाथा की पहली- पहली गाथायें हैं। तत्त्व मंगल इन तीनों गाथाओं से मिलकर बना है। दूसरी गाथा में 'भव संसार निवार' के स्थान पर 'गुरू संसार निवार' योग्य और उचित है क्योंकि 'गुरू ही संसार से पार लगाने वाले हैं। ऐसा इस पद का अर्थ है और संपादित प्रति में मूल पाठ भी यही है अत: 'गुरू संसार निवार' पढ़ें, यही अनुरोध है । तत्त्व मंगल के बाद हाथ जोड़कर बोलना चाहिये - 'देव को, गुरू को,धर्म को नमस्कार हो।' जिज्ञासा- तीन आशीर्वाद क्यों, किसको, किसके द्वारा दिये गये? समाधान- आशीर्वाद-श्री संघ का उदय-श्री गुरू तारण स्वामी जी ने जाति पंथ गढ़ तोड़कर, जग से मुख को मोड़कर, निज से नाता जोड़कर जो आध्यात्मिक महाक्रांति की वह अद्वितीय थी। श्री तारण तरण स्वामी जी महाराज द्वारा उदित जन चेतनाओं के जागरण का महा प्रवाह तथाकथित धर्म गुरूओं-भट्टारकों और पंडितों को रास नहीं आया फलत: श्री गुरू तारण स्वामी जी को जहर दिया गया, अनेकों उपसर्ग हुए, किन्तु उनकी साधना निरंतर वृद्धिंगत होती गई और सिद्ध पुरूष के रूप में उनकी प्रसिद्धि हुई । लाखों लोग जुड़ने लगे तब एक निश्चित व्यवस्था बनाने के उद्देश्य से उनके लगभग ८४ प्रमुख शिष्यों की सेमरखेड़ी में बैठक हुई और श्री तारण तरण श्रावकाचार जी ग्रंथ की गाथा १९९-२०० के आधार पर तारण पंथ की आचार व्यवस्था का निर्धारण किया गया कि "जो भी व्यक्ति सात व्यसनों का त्याग और १८ क्रियाओं का पालन करने का संकल्प करेगा वह तारण पंथी होगा।" यह निर्णय लेने के पश्चात् वे सभी शिष्य सेमरखेड़ी के निर्जन वन की गुफा में साधनारत श्री गुरू तारण स्वामी जी के पास पहुंचे और लिये गये निर्णय का विनम्र निवेदन किया तथा सभी ने ७ व्यसनों का त्याग कर १८ क्रियाओं का पालन करने का संकल्प करके श्री गुरू महाराज से आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना की, उस समय श्री गुरू तारण स्वामी जी ने सर्वप्रथम तारण पंथी होने वाले उन भव्य आत्माओं को यह तीन आशीर्वाद दिये। पहला आशीर्वाद - सम्यग्दर्शन का, दूसरा आशीर्वाद - सम्यग्ज्ञान का और तीसरा आशीर्वाद सम्यक्चारित्र की प्राप्ति के लिये दिया। तीसरे आशीर्वाद की अंतिम पंक्ति में कहा गया है "उववन्नं श्री संघं जयं" अर्थात् "श्री संघ उत्पन्न हो गया, जयवंत हो।" इस प्रकार श्री गुरू महाराज ने तीन आशीर्वाद दिये और श्री संघ का उदय हुआ। जिज्ञासा- 'यांचे सुरतरू देय सुख' दोहा क्यों नहीं दिया गया ? समाधान- 'यांचे सरतरू देय सख' दोहा प्राचीन प्रतियों में नहीं है इसलिये नहीं दिया गया और प्रारम्भिक शुरूवात प्राचीन प्रतियों के अनुसार यथावत् है।

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