Book Title: Mandir Vidhi
Author(s): Basant Bramhachari
Publisher: Akhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj

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Page 51
________________ जिज्ञासा- 'सुगुरू निदान' के स्थान पर 'सुगुण निधान' करने का क्या कारण है ? समाधान- चौथे काल के अन्त .... मंगल की यह पंक्ति 'भगवान सुगुरू निदान मुनिवर' अर्थ पूर्ण नहीं है; अतः भगवान सुगुण निधान मुनिवर किया गया है, जिसका सटीक अर्थ मंगल में देखें। जिज्ञासा - मंदिर विधि के विशेष उल्लेखनीय बिन्दु कौन-कौन से हैं ? समाधान- 'समवशरण चौसंघ' वाले विभाग की अंतिम पंक्ति अगम निगम प्रवेश पहुंचे' के स्थान पर 'अगम गम प्रवेश पहुँचे' उपयुक्त है। अर्थ यथास्थान देखें। विशेष यह कि मंगल में भगवान महावीर स्वामी का विपुलाचल पर्वत पर समवशरण लगना, राजा श्रेणिक का समवशरण में जाना, रथ से उतर पयादे भये..., समवशरण में राजा श्रेणिक अनेक प्रश्न पूछते भये, भगवान महावीर स्वामी द्वारा राजा श्रेणिक को अकता प्रसाद और गुरु की महिमा, इस संपूर्ण प्रसंग को क्रमिक स्वरूप दिया गया है। यह संपूर्ण प्रसंग पहले आगे पीछे पढ़ने का क्रम रहा है जो इस संपादन में व्यवस्थित कर दिया गया है। 'श्रेणीय कथ्य नायक श्लोक में अनेक स्थानों पर 'तं तुट्ठो, नं तुट्ठो 'मिलता है किन्तु इसका सही पाठ है- 'संतुट्ठो' जिसका अर्थ है- संतुष्ट, पूरा अर्थ धर्मोपदेश में देखें । प्रारंभ में धर्मोपदेश पूज्य आर्यिका कमल श्री माता जी के मार्गदर्शन में आर्यिका ज्ञान श्री और श्री रुइया रमन जी द्वारा लिखा गया है, प्राचीन प्रतियों में प्रमाण उपलब्ध हैं, अत: अर्थ में इसे स्पष्ट किया गया है। धर्मोपदेश में पहले हम भ्रम सहित पढ़ते रहे 'आठ पहर की ३२ घड़ी, या आठ पहर की ६४ घड़ी और जब भ्रांति अपनी चरम सीमा पर पहुंची तो संख्या पढ़ना ही छोड़ दिया और पुस्तकों में छपने लगा 'आठ पहर की घड़ी में किन्तु गणित से प्रमाणित है कि आठ पहर में ६० घड़ी ही होती हैं, देखिये घड़ी वाला प्रसंग । स्तवन का उपयुक्त क्रम क्या है ? जिज्ञासा- 'नाम लेत पातक करें ५१ - समाधान- 'नाम लेत पातक कटें' स्तवन विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग क्रम से पढ़ा जाता है; किन्तु इस कृति में जो क्रम दिया है वह बहुत ही उपयुक्त और प्रासंगिक है अत: यही क्रम उचित है, क्योंकि नाम लेत पातक करें और गुण अनंतमय इन दो दोहों में सच्चे देव का स्तवन है । पश्चात् अगम हती......., विघन विनाशन और कठिन काल इन तीन दोहों में सच्चे गुरू का स्तवन है। परम्परा यह धर्म....... और धन्य धन्य जिन धर्म......... इन दो दोहों में सच्चे धर्म का स्तवन है और अंत में धन्य धन्य गुरू तार जी....... और जो कदापि गुरू तार को इन दो दोहों में इन सच्चे देव गुरू धर्म का सच्चा स्वरूप बताने वाले श्री गुरु तारण तरण स्वामी जी महाराज की भक्ति और बहुमान है, इस प्रकार यह क्रम उचित और प्रासंगिक है। जिज्ञासा - शास्त्र जी को नाम कहा दर्शावत हैं इसका क्या अर्थ है ? समाधान- "अब श्री शास्त्र जी को नाम कहा दर्शावत हैं" इस वाक्य में 'कहा' का अर्थ कहने के अभिप्राय में नहीं समझना चाहिये। जैसे-यह पढ़ते हैं कि, 'अब शास्त्र जी का नाम कहा, सो दर्शावत हैं'। यह अशुद्ध वांचन उचित नहीं है। यहाँ अर्थ है कि शास्त्र का नाम (स्वरूप) क्या दर्शाते हैं इसलिये अब श्री शास्त्र जी को नाम कहा दर्शावत हैं, ऐसा उच्चारण करके अस्थाप किये हुए ग्रंथों का हाथ जोड़कर भक्ति पूर्वक उल्लेख करना चाहिये। ------. -------

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