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१. देव वन्दना
मैं वंदना ॥ १ ॥
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सब घातिया का घात कर निज लीन हुई जो आत्मा । परिपूर्ण ज्ञानी वीतरागी, वह सकल परमात्मा || जिनराज हैं वह जिन्हें आती, कभी पर की गंध ना चेतनमयी सत देव की शत शत करूं जिनवर वही प्रभु हैं वही जो राग द्वेष विहीन हैं । कहते जिनेश्वर उन्हीं को, निज रूप में जो लीन हैं ॥ निर्दोष निष्कषाय जिनको है करम का बन्ध ना चेतनमयी सत देव की, शत शत शत करूं मैं वन्दना ॥ सब घाति और अघाति आठों कर्म जिनने क्षय किये । सम्यक्त्व दर्शन ज्ञान मय जिन सर्वगुण प्रगटा लिये ॥ वे सिद्ध परमातम प्रभु, स्व तत्व मय जहां द्वन्द ना । चेतनमयी सत देव की शत शत करूं मैं वन्दना शत करूं मैं वन्दना ॥ ३ ॥ हैं सिद्ध सर्व विशुद्ध निर्मल तत्व मय जिनकी दशा । जो हैं सदा विज्ञान घन अमृत रसायन मय दशा ॥ परिणति हुई निरंजना ।
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ऐसे निकल परमात्म जिन,
मैं वन्दना ॥ ५ ॥
चेतनमयी सत देव की, शत शत करूं मैं वन्दना || 8 || अरिहन्त हैं सर्वज्ञ हैं सर्वज्ञ चिन्मय, चिन्मय वीतराग जिनेश जिनेश हैं । लोकाग्रवासी सिद्ध जो, सिद्ध जो, नित निरंजन परमेश हैं ॥ यह देव हैं जिनका रहा, पर से कोई सम्बन्ध ना । चेतनमयी सत देव की शत शत शत करूं अरिहंत सिद्धादि कहे, व्यवहार से सत देव हैं। परमार्थ सच्चा देव, निज शुद्धात्मा स्वयमेव है || चैतन्य मय शुद्धात्मा में, राग का है रंग ना । चेतनमयी सतदेव की शत शत करूं मैं वन्दना ॥ ६ ॥ इस देह देवालय बसे शुद्धात्मा को जान लो I चेतन त्रिलोकी भूप, सच्चा देव यह पहिचान लो ॥ अरिहंत सम निज आत्मा, जहां योग की निस्पंदना | चेतनमयी सत देव की शत शत करूं मैं वन्दना ॥ जग मांहि सच्चे देव को तो, कोई विरले जानते । जो भेद ज्ञानी हैं वही, निज रूप को सिद्धों सदृश निज आत्मा, जहां कर्म का है चेतनमयी सत देव की शत शत करूं मैं
वन्दना ॥ ७ ॥
पहिचानते ॥ संग ना ।
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वन्दना ॥ ८ ॥