Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 52
________________ महावीर का अर्थशास्त्र नियंत्रित आवश्यकता वाला समाज कभी दुःखी नहीं होता। न तो कोई इतना अमीर बनता है कि दौलत का पहाड़ खड़ा कर ले, न इतना बड़ा गढ़ा बनाता है, जो खाली पड़ा रहे । जिस समाज में आवश्यकता, इच्छा और उपभोग का सीमाकरण है, वह समाज कभी भूखा नहीं रहता। वह भूखा रहता है, जिसमें इच्छा, आवश्यकता और उपभोग का अनियंत्रण होता है, ज्यादा ऊंचाई और नीचाई होती है । मौलिक मनोवृत्ति ५० भगवान् महावीर के समय के समाज की चर्चा करें। उन्होंने जिस व्रती समाज का निर्माण किया था, उसमें स्वामित्व और उपभोग — दोनों का सीमाकरण था । स्वामित्व एक मौलिक मनोवृत्ति है। मनोविज्ञान के संदर्भ में हम स्वामित्व की मीमांसा. कर सकते हैं मैक्डूगल आदि मानसशास्त्रियों ने मौलिक मनोवृत्तियों का एक वर्गीकरण किया । महावीर ने मनोवृत्ति का स्वरूप बताते हुए कहा – मनुष्य की एक ही मनोवृत्ति है और वह है अधिकार की भावना, परिग्रह या संग्रह की भावना । सब कुछ अधिकार भावना से ही हो रहा है । दूसरी मनोवृत्तियां उसकी उपजीवी हैं । यह अधिकार की मनोवृत्ति मनुष्य में ही नहीं, छोटे से छोटे जीव-जन्तुओं और पेड-पौधों में भी होती है। आचार्य मलयगिरि ने इस ममत्व और अधिकार की भावना को समझाने के लिए अमरबेल का उदाहरण दिया । अमरबेल प्रारम्भ में किसी पेड़ का सहारा लेकर ऊपर चढ़ती है । फिर वह समूचे पेड़ पर अपना आधिपत्य जमा लेती है, उस पर छा जाती है और धीरे-धीरे उसे खा जाती हैं। अधिकार की भावना मधुमक्खी में भी होती है, एक चींटी में भी होती है और छोटे-बड़े सभी प्राणियों में होती है। छोटे से छोटा प्राणी भी अपने लिए संग्रह करता है। अधिकार की उसमें मौलिक मनोवृत्ति होती है । व्रती समाज का सूत्र वर्तमान में साम्यवाद और पूंजीवाद के संदर्भ में स्वामित्व के अनेक रूप बन गए हैं - निजी स्वामित्व, सार्वजनिक स्वामित्व और सामूहिक स्वामित्व । व्रती समाज का पहला सूत्र बना - स्वामित्व का सीमाकरण हो । व्यक्तिगत स्वामित्व सीमित होना चाहिए। व्रती समाज के दस प्रमुख लोग थे, सबके सब सम्पन्न थे । उन सबने व्यक्तिगत स्वामित्व का सीमाकरण किया । अर्थ प्राप्ति की लालसा असीम है, आदमी कहां तक जाएगा ? सीमा का विवेक तो होना ही चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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