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महावीर का अर्थशास्त्र
प्रश्न-फाइव स्टार होटल में रहना पसंद करने वाला व्यक्ति आंतरिक परिवर्तन की साधना कर पाएगा?
उत्तर-आंतरिक परिवर्तन पर हमारा ध्यान नहीं गया इसीलिए व्यक्ति फाइव स्टार होटल में रहना चाहता है। अगर संन्यासी है और वह आन्तरिक परिवर्तन की साधना करता है तो उसका जीवन भिन्न प्रकार होगा। आप देखेंगे कि हम लोग जहां बैठते हैं, वहां पंखा भी नहीं चलता, एयरकंडीशनर की तो बात ही दूर है। भीतरी संवेगों का जब तक परिवर्तन नहीं करेंगे, तब तक फाइवस्टार होटल मनुष्य के दिमाग में घूमता रहेगा। वस्तुत: व्यक्ति फाइवस्टार होटल में नहीं रहता, उसके दिमाग में फाइव स्टार होटल रहती है।
राजा ने संन्यासी से कहा—'आप भी महल में रहे और मैं भी महल में रहा फिर फर्क क्या रहा?' संन्यासी ने कहा—'कुछ ज्यादा फर्क नहीं रहा। फर्क बस इतना रहा कि मैं तुम्हारे महल में रहा और महल तुम्हारे मन में रहा।'
दिमाग से यह महल कैसे निकले, उसके लिए साधना की पद्धति थी। ऐसा अभ्यास करो तो परिवर्तन आयेगा । आज पुन: इस सचाई को जीने की जरूरत है। ऐसा होने पर ही आंतरिक परिवर्तन की साधना के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। ___ प्रश्न-सर्जन और विसर्जन के संदर्भ में महावीर, गांधी, मार्क्स और केनिज के विचार क्या हैं? विसर्जन को किस रूप में लेना चाहिए?
उत्तर–महावीर का सारा चिंतन विसर्जन पर चलता है । अर्जन की कोई पद्धति महावीर नहीं बतलाते । वे विसर्जन से अपनी बात शुरू करते हैं । अर्जन तो मनुष्य की प्रकृति है, आवश्यकता है, विवशता है, वह तो मनुष्य करेगा ही, किन्तु अर्जन के बाद विसर्जन कैसे करना है, महावीर यहां से अपनी बात शुरू करते हैं। गांधी जी आध्यात्मिक के साथ राजनीतिक व्यक्तित्व भी थे। वे विसर्जन की बात करते हैं ट्रस्टीशिप के रूप में और अर्जन की बात करते हैं सर्वोदयी व्यवस्था के रूप में। उनके ये दोनों रूप हैं। जो मार्क्स का चिंतन है वह सारा विसर्जन का है। अर्जन वहां है ही नहीं। सारी संपदा राज्य की है। अर्जन की कोई बात ही नहीं है। इस अर्थ में महावीर के साथ उनकी बड़ी समानता दिखाई देती है । केनिज की दृष्टि में विसर्जन की कोई बात नहीं है, केवल. . . अर्जन और अर्जन ही उनका सूत्र रहा। अर्जन को इतना बढ़ाओ, जहां कोई सीमा ही न हो।
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