Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 125
________________ १२३ महावीर और अर्थशास्त्र महावीर का अर्थशास्त्र प्रवचनमाला पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के सान्निध्य में सम्पन्न हुई। प्रवचन माला का समापन अणुव्रत अनुशास्ता के मंगल उद्बोधन से होता । उनके उद्बोधन एक नई दृष्टि लिए हुए थे। प्रस्तुत अध्याय में अणुव्रत अनुशास्ता के उन्हीं महत्त्वपूर्ण विचारों | का आकलन है। आज जो कहा जा रहा है, वह पचास वर्ष पहले कहा जाता तो लोग सुनने को तैयार नहीं होते। इसलिए कि आज लोग इतनी दुविधा में फंस गए हैं कि कहीं शान्ति नहीं है। वे खोज रहे हैं कि कहीं से शान्ति का रास्ता मिले । कवि ने कहा नीकी पै फीकी लगे, बिना समय की बात । जैसे योद्धा युद्ध में, नहिं सिंगार सुहात ।। योद्धा के लिए सिंगार की बात अच्छी है, किन्तु वह समय पर होनी चाहिए। युद्ध में शस्त्र धारण करके जाते समय श्रृंगार-प्रसाधन करना समयोचित बात नहीं है। इसलिए आज की हमारी यह बात सामयिक है और निश्चय ही सबको अच्छी लगेगी। संगति कैसे हो? प्रश्न होता है-महावीर और अर्थशास्त्र-इसकी संगति कैसे बैठेगी? महावीर वीतराग हैं, तीर्थंकर हैं, राग से विमुक्त हैं, वे अर्थशास्त्र की बात कैसे करेंगे? हम सिद्ध महावीर की बात नहीं कर रहे हैं, साधक महावीर की बात कर रहे हैं। सिद्ध महावीर अर्थ की बात नहीं करेंगे। महावीर तीर्थंकर हैं तो भी वे साधना में हैं। उस समय महावीर हर बात कहने के अधिकारी हैं। आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा एतच्च सर्वं सावद्यमपि लोकानुकम्पया। स्वामी प्रवर्तयामास, जानन् कर्तव्यमात्मनः॥ तीर्थंकर ऋषभदेव ने युगानुकूल मार्गदर्शन दिया- कृषि कैसे करनी चाहिए, तलवार हाथ में कैसे लेनी चाहिए. श्रम कैसे करना चाहिए. उपार्जन कैसे करना चाहिए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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