Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 128
________________ १२६ महावीर का अर्थशास्त्र अर्थ किसलिए अर्थ आखिर है किसके लिए? वह सुखी जीवन के लिए ही तो है । वह स्वयं को, परिवार, समाज और राष्ट्र को सुखी बनाए । चिन्तन तो यही है, किन्तु वह ज्यादा दुःखी बनाता जा रहा है। ऐसी स्थिति में फिर से एक बार विचार करना पड़ेगा। हम अर्थशास्त्र के विद्यार्थी नहीं हैं, धर्मशास्त्र के विद्यार्थी हैं। किन्तु हर शास्त्र दूसरे शास्त्र से जुड़ा हुआ है, इसलिए किसी अन्य विषय पर विचार करते समय अर्थ के विषय में भी हम विचार करते हैं। ___मात्र अर्थ से कोई सुखी नहीं बन सकता । भगवान् महावीर के पास दो व्यक्ति आए । एक सम्राट श्रेणिक और दूसरा श्रावक पूनिया। सम्राट श्रेणिक उस समय का सबसे बड़ा व्यक्ति था। उसकी सम्पत्ति का कोई पार न था। पूनिया श्रावक पूनी कात कर जीवन निर्वाह करने वाला व्यक्ति था। महावीर से पूछा गया-आपकी दृष्टि में महत्त्व सम्राट् श्रेणिक का है या पूनिया का? महावीर ने कहा—'दोनों का। सम्राट श्रेणिक के कारण हजारों-हजारों व्यक्ति मेरे पास आए। दूसरी ओर पूनिया जितना संतोषी और सुखी है उतना सुख और संतोष सम्राट् स्वप्न में भी प्राप्त नहीं कर सकता।' चिन्तन बदले हम चाहते हैं— मनुष्य का जीवन पूनिया की तरह शान्त, संतुष्ट और सुखी हो। अर्थशास्त्र की हमारी अवधारणा यह है कि अर्थ के बिना आदमी जी नहीं सकता। अतिशय अर्थार्जन भी आदमी को सुख से जीने नहीं देगा। इस संदर्भ में अल्पेच्छा, अल्पारम्भ, अल्प परिग्रह का सिद्धान्त ही सही दृष्टि देने वाला है। गांधीजी इसका प्रयोग अक्सर किया करते थे। वे प्रयोक्ता थे, मात्र उपदेष्टा नहीं थे। अमेरिकी पत्रकार लुई फिशर गांधी जी के पास आए। सेवाग्राम में कुछ दिन रहने की इच्छा व्यक्त की। गांधीजी की स्वीकृति मिल गयी। वहां की गर्मी में रह कर लुई फिशर की हालत खराब हो गयी। गांधीजी उसकी शक्ल देखकर समझ गए, बोलेतुम्हें एयरकंडीशन की जरूरत है, अभी लाता हूं। पानी का एक बड़ा टब मंगाया, उसके पास दो स्टल रख दिये। लई फिशर स्टूल पर बैठ गया, उसने अनुभव किया-गर्मी शान्त हो गयी है। वह प्रसन्न हो गया। चिंतन समयोचित होना चाहिए। हम मानते हैं, हर व्यक्ति अर्थ से परे नहीं हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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