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महावीर का अर्थशास्त्र
५. अपरिग्रह अणुव्रत • मैं स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान करता हूं—इच्छा का परिमाण करता हूं।
मेरे स्वामित्व में जो परिग्रह है और आगे होगा, उसकी सीमा निम्नांकित प्रकार से करता हूं, उससे अधिक परिग्रह का आजीवन परित्याग करता
१. क्षेत्र, वास्तु (घर) का परिमाण । २. सोना, चांदी, रत्न आदि का परिमाण । ३. धन, धान्य का परिमाण ।
४. पशु, पक्षी आदि का परिमाण । .. ५. कुप्यप्रमाण-तांबा, पीतल धातु तथा अन्य गृहसामग्री, यान, वाहन आदि
का परिमाण। मैं संतान की सगाई, विवाह के उपलक्ष्य में रुपये आदि के लेने का ठहराव नहीं करूंगा। मैं अपनी परिशुद्ध (नेट) आय का कम से कम एक प्रतिशत प्रतिवर्ष विसर्जन करूंगा। यदि मेरी परिशुद्ध (नेट) वार्षिक आय पचास हजार रुपये से अधिक होगी तो कम से कम अपनी आय का तीन प्रतिशत विसर्जन करूंगा। विसर्जित राशि पर अपना किसी प्रकार का स्वामित्व नहीं रखूगा। मैं अपरिग्रह अणुव्रत की सुरक्षा के लिए उक्त सीमाओं और नियमों के
अतिक्रमण के बचता रहूंगा। ६. दिग् परिमाण व्रत • मैं ऊंची, नीची, तिरछी दिशाओं में स्वीकृत सीमा से बाहर जाने व हिंसा
आदि के आचरण का प्रत्याख्यान करता हूं। • मैं दिव्रत की सुरक्षा के लिए निम्न निर्दिष्ट आक्रिमणों से बचता रहूंगा
ऊंची, नीची, तिरछी दिशा के परिमाण का अतिक्रमण करना। एक दिशा का परिमाण घटाकर दूसरी दिशा के परिमाण का अतिक्रमण
करना। ३. दिशा के परिमाण की विस्मृति होना।
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