Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 152
________________ १५० महावीर का अर्थशास्त्र om ४. 3. १३. वाहन विधि-वाहन का परिमाण । १४. शयन विधि-पलंग, बिछौने आदि का परिमाण। १५. उपानद् विधि-जूते, चप्पल आदि का परिमाण । १६. सचित्त विधि-सजीव द्रव्यों का परिमाण । १७. द्रव्य विधि-खाद्य, पेय पदार्थों की संख्या का परिमाण । • भोजन संबंधी उपभोग-परिभोग व्रत की सुरक्षा के लिए मैं इन अतिक्रमणों से बचता रहूंगा१. सचित्ताहार--प्रत्याख्यान के उपरान्त सचित वस्तु का आहार करना। २. सचित्त प्रतिबद्धाहार-सचित्त संयुक्त आहार करना। अपक्व धान्य का आहार करना। अर्धमान धान्य का आहार करना। असार फल आदि खाना। • कर्म (व्यवसाय) की दृष्टि से पन्द्रह कर्मादान श्रमणोपासक के लिए मर्यादा के उपरान्त अनाचरणीय हैं। १. अंगारकर्म-अग्निकाय के महाआरंभ वाला कार्य । २. वनकर्म-जंगल को काटने का व्यवसाय । शाकटकर्म-वाहन चलाने का व्यवसाय । भाटककर्म-किराये का व्यवसाय । स्फोटकर्म-खदान, पत्थर आदि फोड़ने का व्यापार । दन्तवाणिज्य-हाथीदांत, मोती, सींग, चर्म, अस्थि आदि का व्यापार । लाक्षावाणिज्य-लाख, मोम आदि का व्यापार । रसवाणिज्य–घी, दूध, दही तथा मद्य, मांस आदि का व्यापार । विषवाणिज्य-कच्ची धातु, संखिया, अफीम आदि विषैली वस्तु तथा अस्त्र शस्त्र आदि का व्यापार । १०. केशवाणिज्य-चमरी गाय, घोड़ा, हाथी तथा ऊन एवं रेशम आदि का व्यापार। ११. यंत्र पीलनकर्म—ईख, तिल आदि को कोल्हू में पीलने का धंधा। १२. निल्छनकर्म-बैल आदि को नपुंसक करने का धंधा। . १३. दावानलकर्म-खेत या भूमी को साफ करने के लिए आग लगाना km3 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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