Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 155
________________ २. व्रत-दीक्षा १५३ or संलेखना मैं इस संलेखना व्रत की आराधना करने के लिए निम्न निर्दिष्ट अतिक्रमणों से बचता रहूंगा इहलोक सम्बन्धी सुखों की अभिलाषा । २. परलोक सम्बन्धी सुखों की अभिलाषा । ३. जीने की अभिलाषा। मरने की अभिलाषा। ५. कामभोग की अभिलाषा । x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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