Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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१०. देशावकाशिक व्रत
मैंने छहों दिशाओं में जाने का जो परिमाण किया है, उसका तथा अन्य व्रतों की सीमा का प्रतिदिन या अल्पकालीन संकोच करूंगा । ११. पौषधोपवास व्रत
• मैं प्रति वर्ष कम से कम एक पौषध करूंगा । दिन-रात उपवासपूर्वक समता की विशेष साधना करूंगा। मैं पौषध व्रत की सुरक्षा के लिए निम्न निर्दिष्ट अतिक्रमणों से बचता रहूंगा
स्थान, वस्त्र, बिछौने, आदि को बिना देखे या असावधानी से काम में लेना ।
3.
४.
५.
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हूंगा
१.
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३.
४.
५.
६.
स्थान, वस्त्र, बिछौने आदि को रात्रि के समय बिना पूंजे असावधानी से पूंज कर काम में लेना
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भूमि को दिन में बिना देखे या असावधानी के मल-मूत्र का विसर्जन
१२. यथासंविभाग व्रत
• मैं अपने प्रासुक और एषणीय भोजन, वस्त्र आदि का (यथासंभव) संविभाग देकर संयमी व्यक्तियों के संयम-जीवन में सहयोगी बनूंगा ।
संविभाग व्रत की अनुपालना के लिए निम्न निर्दिष्ट अतिक्रमणों से बचता
करना ।
भूमि को रात्रि में बिना प्रमार्जन किए या असावधानी से मल-मूत्र का विसर्जन करना ।
पौषधोपवास व्रत का विधिपूर्वक पालन न करना ।
एषणीय वस्तु एषणीय वस्तु काल का अतिक्रमण करना ।
को सचित्त को सचित्त वस्तु
महावीर का अर्थशास्त्र
वस्तु के ऊपर रखना ।
से ढकना ।
अपनी वस्तु को दूसरों की बताना ।
मत्सरभाव से दान देना ।
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अप्रासुक और अनैषणीय का दान देना, जैसे- साधु के निमित्त बनाकर, खरीदकर, समय को आगे-पीछे कर आदि तरीकों से दान देना ।
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