Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 153
________________ २. व्रत-दीक्षा १५१ ه तथा जंगलों में आग लगाना। १४. सरद्रहतड़ागशोषण-झील, नदी, तालाब आदि को सुखाना। १५. असतीजनपोषण-दास, दासी, पशु-पक्षी आदि का व्यापारार्थ पोषण करना। ८. अनर्थदण्ड विरमण व्रत • मैं अनर्थदण्ड का प्रत्याख्यान करता हूं। इसके चार प्रकार हैं१. अपध्यानाचरित-आर्त, रौद्र ध्यान की वृद्धि करने वाला आचरण । २. प्रमादाचरित-प्रमाद की वृद्धि करने वाला आचरण । ३. हिंस्रप्रदान—हिंसाकारी अस्त्र-शस्त्र देना। पापकर्मोपदेश-हत्या, चोरी, डाका, द्यूत आदि का प्रशिक्षण देना । इस अनर्थदण्ड विरमण व्रत की सुरक्षा के लिए मैं निम्नलिखित अतिक्रमणों से बचता रहूंगा१. कन्दर्प—कामोद्दीपक क्रियाएं। कौतकुच्य–कायिक चपलता। मौखर्य—वाचालता। संयुक्ताधिकरण-अस्त्र-शस्त्रों की सज्जा। ५. उपभोग-परिभोगातिरेक-उपभोग-परिभोग की वस्तुओं का आवश्य कता के उपरान्त संग्रह। ९. सामायिक व्रत • व्रती के लिए प्रतिदिन कम से कम एक सामायिक करना आवश्यक है। वैसा सम्भव न हो सके तो प्रति सप्ताह कम से कम एक सामायिक अवश्य करना-एक मुहूर्त (४८ मिनिट) तक समता की विधिवत् साधना करना। सामायिक का अर्थ है सावध योग से विरत होना तथा निरवद्य योग में प्रवृत्त होना। इसके पांच अतिचार हैं१. मन दुष्प्रणिधान-मन की असत् प्रवृत्ति। २. वचन दुष्प्रणिधान-वचन की असत् प्रवृत्ति । ३. काय दुष्प्रणि भान-काय की असत् प्रवृत्ति । ४. सामायिक की विस्मृति। ५. नियत समय से पहले सामायिक की समाप्ति । مر یہ سب و Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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