Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 149
________________ २. व्रत - दीक्षा २. सत्य अणुव्रत मैं स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हूं वैवाहिक सम्बन्ध, पशु-विक्रय, भूमि-विक्रय, धरोहर और साक्षी जैसे व्यवहारों में असत्य न स्वयं बोलूंगा, न दूसरों से बुलवाऊंगा, मन से, वचन से, काया से 1 मैं इस सत्य की सुरक्षा के लिए किसी पर दोषारोपण, षड्यंत्र का आरोप, मर्म का प्रकाशन, गलत पथ-दर्शन और कूटलेख' जैसे छलनापूर्ण व्यवहारों से बचता रहूंगा। अणुव्रत ३. अचौर्य मैं स्थूल अदत्तादान (चोरी) का प्रत्याख्यान करता हूं । मैं आजीवन ताला तोड़ने, जेब कतरने, सेंध मारने, डाका डालने, राहजनी करने और दूसरे के स्वामित्व का अपरहण करने जैसे क्रूर व्यवहार न स्वयं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा, मन से वचन से, काया से । मैं इस अचौर्य अणुव्रत की सुरक्षा के लिए चोरी की वस्तु लेने, राजनिषिद्ध वस्तु का आयात-निर्यात करने, असली के बदले नकली मालल बेचने, मिलावट करने, कूट तोल - माप करने और रिश्वत लेने जैसे वचनापूर्ण व्यवहारों से बचता रहूंगा। ४. ब्रह्मचर्य अणुव्रत मैं स्थूल मैथुन' का प्रत्याख्यान करता हूं मैं आजीवन अपनी पत्नी / पति के अतिरिक्त शेष सब स्त्रियों-पुरुषों के साथ संभोग नहीं करूंगा / करूंगी। १४७ मैं इस ब्रह्मचर्य अणुव्रत की सुरक्षा के लिए पर स्त्री और वेश्यागमन, अप्राकृतिक मैथुन, तीव्र कामुकता और अनमेल विवाह जैसे आचरणों से बचता रहूंगा/रहूंगी। १. झूटा दस्तावेज, जाली हस्ताक्षर आदि । २. मैथुन दो प्रकार का है— सूक्ष्म स्थूल | मन, इन्द्रिय और वाणी में जो अल्पविकार उत्पन्न होता है, वह सूक्ष्म है और शरीरिक काम - चेष्टा करना स्थूल मैथुन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160