Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 147
________________ १. महावीर वाणी : मूल स्रोत १४५ मुसावाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वायाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए। इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीगं दाहिणं वा संतेगइया मणुसा भवंति, तं जग—अप्पिच्छा अप्पपरिग्गहा धम्मिहा धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वितिं कप्पेमाणा विहरंति सुसीला सुव्वया सप्पडियाणंदा सुसाहू, एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया।' १. सूर्यगडो - २/२-५८,६३,७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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