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महावीर का अर्थशास्त्र
जिसे देखा न हो, उसके बारे में विवेचन केवल वैचारिक दृष्टि से, साहित्य की दृष्टि से किया जा सकता है । हम सबसे अधिक परिचित और निकट महावीर के हैं क्योंकि उनका जीवन जीते हैं, उनका दर्शन पढ़ते हैं, उनकी बात करते हैं। वे नहीं हैं, किन्तु उनका जीवन-दर्शन हमारे सामने है। महावीर केवल द्रष्टा और दर्शक नहीं थे। वे जो बोलते थे, उसको पहले जीते थे। यह उनकी विशेषता है। आयारों पढ़ें, उनका पूरा जीवन-दर्शन मिलेगा। हम महावीर के अनुयायी हैं इसलिए हमारा प्रयास रहता है कि हम जो कुछ बोलें, उसे पहले जीयें।
महावीर की कोटि में हम किसी दूसरे को कैसे लाएं? अगर न लाएंतो पक्षपात हो जायेगा। महावीर ने यह कभी नहीं कहा-वे ही सब कुछ हैं, वें जो कुछ कह रहे हैं, वही सत्य है । उन्होंने यही कहा—'अप्पणा सच्चमेसेज्जा स्वयं सत्य खोजो। महावीर का खोजा हुआ सत्य अब बासी है, पुराना है । स्वयं सत्य खोजो, यह कौन कहता है ? यह महावीर कहते हैं। इससे एक दृष्टि मिलती है। उनके प्रति आकृष्ट होने की अपेक्षा हम उनके विचारों से आकृष्ट हैं। उन्होंने कहा--तुम मेरे शब्दों के प्रति आकृष्ट मत बनो। सोचो, विचारो और ठीक लगे तब स्वीकार करो।
केवल श्रद्धा के कारण हम महावीर को नहीं मानते, द्वेष के कारण किसी के प्रति हमारी अरुचि नहीं है । हमने आप्तत्व की परीक्षा की है । हमें महावीर में आप्तत्व लगा, इसलिए हमारा आकर्षण महावीर के प्रति है। उन्होंने कहा- महावीर नाम के व्यक्ति के प्रति तुम आकृष्ट मत बनो । भूल जाओ कि महावीर नाम का कोई व्यक्ति है। वे व्यक्ति पूजा के समर्थक नहीं थे।
इसी दृष्टि से हमें मार्क्स, केनिज और गांधी को भी देखें। गांधी में भी कम महापुरुषत्व नहीं मिलता है। कभी-कभी मन में आता है—क्या एक गृहस्थ व्यक्ति ऐसा हो सकता है? ऐसा व्यक्ति जो कहता है, वही करता है और जो करता है, वही कहता है । दुःख-सुख को कोई महत्व ही नहीं देता। विशिष्ट व्यक्तित्व था वह । हम बड़े सम्मान के साथ उनके सिद्धान्तों के प्रति अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। मार्क्स का अवदान . ____ मार्स ने भी बहुत कार्य किया है। मार्क्स न होते तो संसार की अंधश्रद्धा टूटती नहीं। गरीब अपने कर्मों से गरीबी भोग रहा है, उसमें कोई क्या कर सकता है ? उसके भाग्य में ही ऐसा लिखा हुआ है—इस मान्यता को तोड़ना कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी । महावीर ने ऐसा नहीं कहा था पर उनके अनुगामी जैन लोग भी ऐसा मानने लगे थे कि सब कर्मों का खेल है, इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। मार्क्स
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