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महावीर का अर्थशास्त्र
इन्द्राणी की ओर देखा। बात इन्द्राणी की समझ में आ चुकी थी।
यह बड़ी मार्मिक कहानी है । सम्पन्नता से किसी को सुख प्राप्त नहीं हो सकता। सुख अलग चीज है, सम्पन्नता अलग चीज है। हम इस बात को समझ लें तो अर्थशास्त्र का सारा क्रम बदल जायेगा। महावीर, मार्क्स, केनिज और गांधी ___ महावीर, मार्क्स, केनिज और गांधी-ये सब दूरदर्शी थे, अपनी दृष्टि से दूर की बात सोचते थे। दूरदर्शी होना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, बहुत बड़ा गुण है। उपनिषद् में कहा है-'दीर्घ पश्यतु मा ह्रस्वं, परं पश्यतु मापरम् ।' कल क्या होगा? यह क्या देखें । देखना है तो सौ वर्ष बाद क्या होगा, यह देखने की कोशिश करो। बड़ी बात को देखो। इस दृष्टि से जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सचमुच दूरदर्शी थे। वे आज भी हमें प्रेरणा देते हैं कि तुम भी दूरदर्शी बनो।
इस संदर्भ में हम इस बात को भूल जाते हैं जब तक कषाय, नो-कषाय विद्यमान हैं, दरदर्शिता काम नहीं करेगी। यह भी दूरदृष्टि से देखना चाहिए कि मनुष्य की स्थितियां कैसे बदलें? मनुष्य के कषाय कैसे बदले जा सकते हैं? उसकी मनोवृत्तियां कैसे बदली जा सकती हैं ? मनुष्य को ठीक कैसे किया जा सकता है ?
___ महावीर ने इस पर खुब चिंतन किया। गांधी ने भी किया। महावीर ने चिंतन किया तो हुआ क्यों नहीं? हुआ हो या न हुआ हो, पर चिंतन तो उन्होंने किया। उन्होंने कारगर उपचार बताया, पर औषधि का सेवन कराना तो उनके हाथा की बात नहीं थी। महावीर ने कहा- अर्थ तुम्हारे लिए जरूरी है, किन्तु उसका त्याग भी जरूरी है । हिंसा तुम्हारे लिए अनिवार्य है, किन्तु अहिंसा भी उतनी ही अनिवार्य है। परिग्रह आवश्यक है तो अपरिग्रह भी जरूरी है। ये बातें उन्होंने बतलाई। इस दृष्टि से कहा जा सकता है. जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने अपनी-अपनी दृष्टि से युग की समस्याओं को समझा है और उनका समाधान दिया है। कषाय का अल्पीकरण करें ___कषाय को कम करना साधुओं का ही काम नहीं है। प्राचीन धारणा थी योगी योग-साधना जंगल में करें, शहरों में उनका क्या काम है। हमने इस दृष्टि को महत्व दिया-योग-साधना जंगल में ही नहीं, शहर में भी आवश्यक है, भीड़ में भी आवश्यक है, यहां तक कि युद्ध में भी आवश्यक है। योग-साधना सबके लिए सब समय में आवश्यक है। राष्ट्र नेता, समाजनेता, संस्थाओं के नेता इनके लिए तो कषायों को
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