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महावीर और अर्थशास्त्र
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ने इस मान्यता को तोड़ा-कर्मों की गति मानकर क्लीब मत बनो। कर्म हम कर रहे हैं, हमको कर्म नहीं कर रहा है। कर्मों के करने वाले हम हैं तो तोड़ने वाले भी हम ही हैं। मानना पड़ेगा कि ऐसा विचार देकर मार्क्स ने मानव जाति का बड़ा कल्याण किया, शोषित और गरीब का उद्धार कर दिया।
हम कमियों को छोड़ दें, गुणग्राही बनें, यह हमारा दृष्टिकोण है। मार्क्स की विचारणा में एक कमी रह गयी, जिससे वह असफल हो गया। वह कमी यह रही—उसके विचारों के साथ अध्यात्म नहीं जुड़ा । अहिंसा और अध्यात्म जुड़ जाते तो मार्क्स युग का महान् विचारक सिद्ध होता किन्तु उसने अहिंसा को भुला दिया। जैसे-तैसे लक्ष्य को प्राप्त करो, यह चिन्ता हावी हो गयी और इसीलिए साम्यवाद का प्रयोग असफल हो गया। सुख और सम्पन्नता
केनिज के विचार को भी सर्वथा असत्य नहीं कहा जा सकता। उसने सुविधा और सम्पन्नता का दर्शन किया किन्तु इस तथ्य को भुला दिया कि साधन और सुविधा के मिल जाने पर भी सुख मिल जाये, यह जरूरी नहीं है। बड़े सम्पन्न व्यक्तियों को दुःख भोगते हुए हमने देखा है । सबके सब सम्पन्न हो जाएं तो भी विपन्नता रहेगी, वह मिटेगी नहीं।
स्वर्ग लोक से उतर कर इन्द्र और इन्द्राणी एक छोटे से ग्राम में आए। गांव बड़ा दरिद्र था। वहां के निवासी फटेहाल और गरीब थे। इन्द्राणी को दया आ गयी। उन्होंने इन्द्र से कहा-महाराज ! आप इन गरीबों का संकट काटें । बड़ा दु:ख भोग रहे हैं। इन्द्र बोले-'तुम समझती नहीं । कोई सुखी बनाने से नहीं बनता। इन्द्राणी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी स्री। हठ के आगे आखिर इन्द्र को भी झुकना पड़ा। इन्द्र ने गांव के घर और गलियां सोने-चांदी से भर दीं। सवेरे लोग सोकर उठे, धन का चारों ओर अम्बार लगा देखा । लोगों ने अकूत धन अपने पास जमा कर लिया। कुछ ही देर में सब सम्पन्न बन चुके थे। ___ कुछ दिनों बाद इन्द्र और इन्द्राणी पुन: वहां आए। गांव को सम्पन्न देखा। इन्द्राणी बहुत प्रसन्न हुई। किन्तु गांव के लोगों को इन्द्राणी ने द:खी पाया। इन्द्र ने पूछा-दु:खी क्यों लग रहे हो? एक व्यक्ति ने बड़ी निराशा से जवाब दिया-न जाने किसकी कुदृष्टि पड़ गयी इस गांव पर । यहां सबके पास सब कुछ है । सब मालिक हो गए, कोई नौकर नहीं मिलता। अपना धन हम किसे दिखाएं? यहां तो सबके यहां रत्नों का भण्डार है। हम इतना धन पाकर सुखी नहीं, दुःखी हैं । इन्द्र ने
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