Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 135
________________ महावीर और अर्थशास्त्र १३३ दक्षिण यात्रा में हमने देखा-समचे दक्षिण में जैन धर्म का बड़ा प्रभाव है। उत्तर भारत में महाजन व्यापारी ही जैन हैं जबकि दक्षिण में हर कौम जैन है । इसका कारण क्या है? खोज की तो पता चला वहां के जैन लोगों ने बड़ी दूरदृष्टि से काम लिया। उन्होंने यह संकल्प किया-जो जैन होगा, उसे शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार बराबर मिलेगा। कोई भूखा नहीं मरेगा, मकान के बिना नहीं सोयेगा। चिकित्सा के अभाव में नहीं मरेगा। इसका परिणाम यह हुआ कि पूरा दक्षिण जैन धर्म के प्रति आकृष्ट हुआ। ईसाई लोग यही तो करते हैं। वे अभावग्रस्त लोगों की पूरी मदद करते हैं। फलस्वरूप उन्होंने अपनी संख्या बढ़ा ली। दूसरी ओर हिन्दू यह आपत्ति करते हैं कि धर्मान्तरण किया जा रहा है किन्तु केवल ऐसा करने से क्या होगा? जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएं भी जिनकी पूरी न हो रही हों, रोटी और कपड़े के भी जो मोहताज हों, वे मदद के लिए किसी न किसी का दामन तो थामेंगे ही। अभी एक फाउण्डेशन बना है, उसका उद्देश्य यही है-हम हर आदमी को शिक्षा, चिकित्सा और आवास देने का प्रयत्न करेंगे। यह काम आभार प्राप्त करने की दृष्टि से नहीं, सेवाभावना और साधर्मिक वात्सल्य की दृष्टि से होगा। जैन शासन में एक शब्द है साधर्मिकता । इस शब्द को अगर हम महत्व दें तो बहुत बड़ा काम हो सकता है, बेरोजगारी और गरीबी मिटाने में बहुत सहायता मिल सकती है। अणुव्रत ग्राम योजना एक कल्पना की जा रही है अणुव्रत ग्राम योजना की। ऐसे अणुव्रत ग्राम तैयार किये जाएं, जहां का कोई भी व्यक्ति बेरोजगार न रहे, भूखा न रहे, कोर्ट-कचहरी में न जाये। सबके सब प्रामाणिक और ईमानदारी का जीवन जीयें। यह योजना थोड़ी-सी भी सफल हो गई तो यह न केवल धर्म की सफलता होगी, समाज की भी बड़ी भारी सफलता होगी । धर्म के लोगों ने कहा- गरीबों को रोटी खिलाओ, पुण्य मिलेगा। गरीबों को भोजन करा कर पुण्य अर्जित करने की इस कामना पर आचार्य भिक्षु ने कड़ा प्रहार करते हुए कहा-किसी को भिखारी मान कर उसे रोटी खिलाना पाप है। उसे भाई मान कर, कर्त्तव्य मानकर, सहायता करने की दृष्टि से यह काम करो। वस्तुत: गरीबी कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है । विवेक से काम लिया जाये और वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से काम किया जाये तो इस पर काबू पाया जा सकता है। पहले जीएं हमने न महावीर को देखा, न गांधी को देखा, न मार्क्स और केनिज को देखा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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