Book Title: Mahavira ka Arthashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 96
________________ महावीर का अर्थशास्त्र करने की हमारी क्षमता बढ़ेगी। इससे अनुस्यूत जागतिक अर्थनीति का निर्धारण होगा तो राष्ट्रीय अहं और प्रभुसत्ता का अहं कम होगा, उसका संतुलन बनेगा। अपराध में कमी लाए नई अर्थनीति का एक पेरामीटर यह होना चाहिए-अर्थ-व्यवस्था अपराध में कमी लाए। यह नहीं माना जा सकता–आज तो अपराध बढ़ रहे हैं, वे अहेतुक हैं। आज की आर्थिक अवधारणा ने व्यक्ति में इतनी लालसा पैदा कर दी कि इतना विकास होना चाहिए। एक आधुनिक व्यक्ति अपने जीवन का एक स्टैण्डर्ड बनाता है, आधुनिक कहलाता है। इस ‘स्टैण्डर्ड आफ लिविंग' के साधन जिन्हें सुलभ हैं वे बड़े अपराधों में जाते हैं, छोटे में नहीं । वे शोषण और व्यावसायिक अपराध करते हैं या राजनीतिक अपराध करते हैं किन्तु जो गरीब आदमी हैं, जिन्हें जीवन के साधन उपलब्ध नहीं है, वे छोटे अपराध में जाते हैं। दो विद्यार्थी साथ में पढ़े। एक के घर में सारे आधुनिक साधन हैं—रेडियो, टी० वी० फ्रिज आदि । दूसरे विद्यार्थी को साइकिल जैसा मामूली साधन भी उपलब्ध नहीं है। साधनहीन विद्यार्थी के मन में सम्पन्न को देखकर यह भावना जागती है-हम गरीब हैं। फिर उसके मन में येन-केन प्रकारेण उन साधनों को प्राप्त करने की भावना जागती है। यह एक मनोवृत्ति इसलिए पनपी है कि साधन शुद्धि और नैतिक मूल्यों पर अर्थनीति में कोई विचार नहीं हुआ। यह व्यवस्था का दोष है। अपराध बढ़ा है, इसमें व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। अगर केवल मध्यम वर्ग होता तो शायद इतने अपराध नहीं होते। आज ये तीन वर्ग हुए हैं—उच्च, मध्यम और निम्न । इससे अपराध और हिंसा को प्रोत्साहन मिला है। गरीबी की रेखा के नीचे जीवन जीने वाले वर्ग के मन में आकांक्षा जाग गयी, किन्तु प्राप्ति के साधनों से वह वंचित रहा। ऐसी स्थिति में नैतिकता, प्रामाणिकता, अध्यात्म-ये सबं उसके लिए बेकार की बातें साबित होती हैं, इन्हें वह मात्र ढकोसला मानने लगता है। इन्हें वह बुर्जुआ वर्ग द्वारा अपने स्वार्थ के लिए बनाई गई ढाल मानता है। सबको अस्वीकार करके वह अपराध की दुनिया में प्रवेश कर लेता है। यह अर्थव्यवस्था के साथ पनपने वाली मनोवृत्ति है। यदि हमने व्यवस्था के साथ समाज की मनोवृत्ति पर ध्यान नहीं दिया तो पूरा आर्थिक विकास हो जाने पर भी समाधान नहीं होगा। दोनों स्वर सुनाई दें अर्थव्यवस्था ऐसी हो, जिसमें एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का शोषण न कर सके और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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