Book Title: Mahavira ka Arthashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 94
________________ महावीर का अर्थशास्त्र विश्व प्रकंपित होता है, अंगुली के परमाणुओं से जुड़े हुए समस्त परमाणु प्रभावित होते हैं। पूरी श्रृंखला जुड़ी है। जैन आचार्यों ने बतलाया कि कपड़े का एक तार अलग करो, उसमें नि:सृत एक परमाणु समुद्र में जाकर सारे समुद्र को प्रकंपित करेगा, तालाब में जाकर सारे तालाब को प्रकंपित करेगा। हम अकेले नहीं हैं, सारे संसार से जुड़े हुए हैं। इसीलिए अनेकान्त का सूत्र बना—न एकान्तत: भिन्न और न एकान्तत: अभिन्न, किन्तु भिन्नाभिन्न । एक व्यक्ति इस लोक से सर्वस्था भिन्न नहीं है और सर्वथा अभिन्न भी नहीं है। पूरे विश्व के साथ हमारा अस्तित्व जुड़ा हुआ है, इसलिए एक व्यक्ति सर्वथा भिन्न नहीं है और उसका स्वतन्त्र अस्तित्व है, इसलिए सर्वथा अभिन्न नहीं है। वह भिन्न भी है और अभिन्न भी है। जब वह अभिन्न है तब उसका प्रभाव पूरे विश्व पर कैसे नहीं होगा? इसीलिए कहा गया—जो लोक का अभ्याख्यान करता है, वह अपना अभ्याख्यान करता है और जो अपना अभ्याख्यान करता है, वह पूरे लोक का अभ्याख्यान करता है। व्यक्ति और विश्व ___ हम व्यक्ति और लोक-दोनों के संदर्भ में चिन्तन करें । हमारा कोई भी चिंतन विश्व को छोड़कर केवल व्यक्ति के संदर्भ में न हो और व्यक्ति को छोड़कर केवल विश्व के संदर्भ में न हो। व्यक्ति और विश्व—दोनों के संदर्भ में हमारा चिन्तन, विचार और नीति का निर्धारण हो । ग्लोबल इकोनामी की नीति का निर्धारण करें तो हमें सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना होगा-यह अर्थनीति विश्व शान्ति के लिए खतरा न बने, व्यक्ति की शांति के लिए खतरा न बने । जो व्यक्ति की शांति को खतरा बनेगी, उसे खण्डित करेगी, वह विश्व शान्ति को खंडित करेगी। जो विश्व की शान्ति को खंडित करेगी, वह व्यक्ति की शान्ति को खंडित करेगी। व्यक्ति और विश्व–दोनों की शांति के लिए खतरा न बने, यह नई अर्थनीति का पहला पेरामीटर है। हिंसा को प्रोत्साहन न मिले दूसरा पेरामीटर- अर्थनीति हिंसा और हत्या को प्रोत्साहन न दे । हिंसा जीवन के साथ जुड़ी हुई है। प्राचीन आचार्यों ने कहा-'जीवों जीवस्य जीवनम्' जीव जीव का जीवन है। यह भी सत्यांश है । इसको भी समग्रता से घटित करेंगे तो सही नहीं होगा। किन्तु इसमें कोई मतभेद नहीं है कि जीवन-निर्वाह के लिए हिंसा अनिवार्य है। हिंसा को सर्वथा तो नहीं छोड़ सकते इसीलिए महावीर ने एक विशेषण जोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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