Book Title: Mahavira ka Arthashastra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 106
________________ १०४ महावीर का अर्थशास्त्र में अनिवार्यताओं और सुविधाओं को छोड़ने की शर्त नहीं है और विलासितापूर्ण आवश्यकताओं की परम्परा को चालू रखने की स्वीकृति भी नहीं है। उपभोग का समर्थन ___ 'इच्छा-परिमाण' के सिद्धान्त की अर्थशास्त्रीय आवश्यकता-वृद्धि के सिद्धान्त से मौलिक भिन्नता दो विषयों की है । पहली भिन्नता यह है-अर्थशास्त्र विलासिताओं के उपभोग का समर्थन करता है। उसके समर्थन में निम्न तर्क प्रस्तुत किए जाते १. विलासिताओं के उपभोग से सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति होती है। २. कर्मशीलता को प्रोत्साहन मिलता है। ३. जीवन-स्तर ऊंचा होता है। ४. धन संग्रह होता है। संकट के समय वह (आभूषण आदि) सहायक सिद्ध होता है। ५. कला-कौशल, कारीगरी तथा उद्योग-धंधों को प्रोत्साहन मिलता है। उपभोग का विरोध सब अर्थशास्त्री इन विलासिताओं के उपभोग के सिद्धान्त का समर्थन नहीं करते । उनका दृष्टिकोण यह है कि विलासिताओं के उपभोग से १. वर्ग-विषमता (Class inequality) बढ़ती है। २. उत्पादन-कार्यों के लिए पूंजी की कमी हो जाती है। ३. निर्धन वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव होता है, द्वेष तथा घृणा की वृद्धि होती विलासिता के प्रति यह दृष्टिकोण धर्म के दृष्टिकोण के भिन्न नहीं है, किन्तु विलासिता के समर्थन का अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण उससे सर्वथा भिन्न है। प्रश्न नैतिकता का दूसरी भिन्नता यह है कि अर्थशास्त्र के नैतिक नियमों की अनिवार्यता स्वीकृत नहीं है । नैतिक नियमों की अवहेलना उसका उद्देश्य नहीं है, किन्तु यह उसकी प्रकृति का प्रश्न है। उसकी प्रकृति उपयोगिता है। उपयोगिता का अर्थ है-आवश्यकता को संतुष्ट करने की क्षमता । नैतिक नियम के अनुसार शराब मनुष्य के लिए लाभदायी नहीं है, इसलिए वह उपयोगी भी नहीं है। वही वस्तु उपयोगी हो सकती है, जो लाभदायी हो। जो प्रवृत्तिकाल और परिणाम-काल-दोनों में सुखद न हो, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160