Book Title: Mahavira ka Arthashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 92
________________ महावीर का अर्थशास्त्र है—जिस समय मनुष्य जाति में क्रोध, अहंकार, माया, छलना और लोभ-ये शान्त होते हैं, समाज व्यवस्था अच्छी चलती है, अर्थव्यवस्था और राज्य-व्यवस्था अच्छी चलती है। जब ये संवेग प्रबल बन जाते हैं तब सारी व्यवस्थाएं विश्रृंखलित हो जाती हैं। एक व्यक्ति, जिसके हाथ में सत्ता है, का संवेग प्रबल बन जाए तो हर कोई हिटलर बन सकता है, स्टालिन बन सकता है और अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए भयंकर से भयंकर संहारक शस्त्रों का प्रयोग कर सकता है। इसलिए यदि हम संतुलित अर्थ-व्यवस्था और जागतिक अर्थ-व्यवस्था की बात करते हैं तो हमें दोनों आयामों पर चलना होगा— बाहर से व्यवस्था का सीमाकरण और भीतर से संवेगों का समीकरण या संतुलन। हम केवल बाह्य व्यवस्था को ठीक करना चाहें और भीतर के संवेग हमारे प्रबल रहें तो यह कभी संभव नहीं है । आज एक व्यवस्था बनेगी, पांच-दस वर्ष बाद अगर कोई शक्तिशाली व्यक्ति आयेगा तो उसे ध्वस्त कर देगा। मार्क्स और केनिज ने जिस अर्थव्यवस्था के परिवर्तन पर ध्यान दिया, वह केवल संसाधन, उत्पादन और विनियम की व्यवस्था थी। व्यक्ति को बदलने की व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिया, इसीलिए मार्क्स की व्यवस्था का परिणाम यह आयाअधिनायकवादी व्यवस्था ने सारी व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। केनिज की व्यवस्था का परिणाम यह आ रहा है-उत्पादन शांति के लिए, भूख मिटाने के लिए कम हो रहा है, संहार के लिए अधिक हो रहा है । यदि संहार में इतनी शक्ति नहीं लगती तो आज गरीबी और बेरोजगारी की समस्या जटिल नहीं रहती। किन्तु यह कैसे संभव है ? जब मनुष्य के भीतर भय और लोभ का संवेग है, प्रभुत्व के विस्तार और घृणा का संवेग है, अपने को ऊंचा और दूसरों को हीन मानने का संवेग है, तब वह भूख मिटाने की चिन्ता क्यों करेगा? उसकी चिन्ता होगी शक्ति के निर्माण की। जहां शक्ति का निर्माण होगा, वहां शस्त्र-निर्माण एक अनिवार्य शर्त है। भयंकर भूल यदि हम नयी अर्थ-व्यवस्था के बारे में सोचें तो इस भूल का परिष्कार करें, जो अतीत में हमसे होती रही है और वह है पदार्थ-व्यवस्था और बाह्य व्यवस्था पर सोरा ध्यान केन्द्रित करना । आन्तरिक व्यवस्था पर हमारा कभी ध्यान ही नहीं गया। जब तक मनुष्य भीतर से नहीं बदलेगा, केवल व्यवस्था के बदलाव से क्या होगा? व्यक्ति कितनी ही अच्छी मोटर या कार बना ले। ड्राइवर कुशल नहीं है तो वह विश्वसनीय नहीं होगी, उससे खतरा बना रहेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160