Book Title: Mahavira ka Arthashastra Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 55
________________ व्यक्तिगत स्वामित्व एवं उपभोग का सीमाकरण • जल-परिमाण • वाहन-परिमाण आदि-आदि एक व्रती यह संकल्प करता है—इतने से ज्यादा वस्त्र मैं अपने पास नहीं रखूगा। एक धोती और एक उत्तरीय-इससे ज्यादा वस्त्र का एक साथ उपभोग नहीं करूंगा। शरीर के प्रक्षालन हेतु मात्र एक तौलिए से ज्यादा नहीं रखूगा । यह सीमाकरण है उस समय के करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं में स्वामी का। . वह जल का भी परिमाण करता है-इतने से ज्यादा पानी का उपयोग मैं नहीं करूंगा। पर्यावरण की समस्या उस समय नहीं थी, न ही उसके लिए कोई उपक्रम था किन्तु इस बात का भान था कि पर्यावरण की समस्या आगे चल कर कभी भी पैदा हो सकती है। आज जो यह समस्या विकट रूप धारण कर चुकी है और भविष्य में इसके विकटतम रूप धारण करने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इससे निपटने का कोई भी उपाय विशेष कारगर नहीं हो रहा है। पानी का जितना दुरुपयोग आज हो रहा है, शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा। भविष्य में यह जल संकट कितना त्रासद सिद्ध होगा, कहा नहीं जा सकता। एक व्रती व्यक्ति जल का सीमाकरण करता है-इतने घड़ों से ज्यादा जल का उपयोग स्नान हेतु नहीं करूंगा। . दतौन के भी सीमित उपयोग की बात कही गई। आज स्थिति यह है—दतौन के लिए छोटी-सी टहनी की जरूरत है तो नीम के पेड़ की पूरी डाल की काट ली जाएगी। आश्रम में ठहरी एक विदेशी महिला से गांधीजी ने कहा-नीम की लकड़ी लाओ, दतौन करना है। महिला गई और पूरी डाल तोड़कर ले आई। गांधी जी ने उसे इतना कड़ा उपालम्भ दिया, जैसे उसने लाख रुपये खो दिए हों । वहां बैठे लोग बोले-बापू ! इतनी छोटी-सी बात के लिए आपने इस महिला को इतना लताड़ दिया। इतने सारे नीम के पेड यहां खड़े हैं, दतौन समाप्त तो नहीं हो गया? गांधीजी ने कहा-'अकेला गांधी ही नहीं है, सारी दुनिया है दतौन करने वाली। इस तरह सब करने लगेंगे तो नीम के पेड का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।' महावीर की सूची का एक व्रत है—'दंतवण विहिपरिमाणं'-दंतवन की विधि का परिमाण। एक व्रत है ‘पुक्खविहिपरिमाणं'-पुष्प की विधि का परिमाण । एक व्रत है ‘फल विहिपरिमाण'-फल की विधि का परिमाण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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