________________
नहीं। धर्म महापुरुषों की वाणी में नहीं छिपा है, अपने ही मैं की ओट में छिपा है। जो उसे वाणियों में खोजते रहते हैं, वे पंडित होकर समाप्त हो जाते हैं। जो उसे अपनी मैं की ओट में खोजते हैं, वे जीवन में उस सत्य को पाते हैं, जिसे हम साधुता कहते हैं, जिसे हम संन्यास कहते हैं, जिसे हम ज्ञान कहते हैं और जिसे अंत में हम मोक्ष कहते हैं।
यदि मुक्त होना है तो एक ही बंधन है जिससे मुक्त होना है और वह बंधन मैं-भाव का है। और वही बंधन हिंसा है। मैं-भाव हिंसा है। मैं-भाव का शून्य हो जाना अहिंसा है। इसलिए महावीर ने अहिंसा को परम धर्म कहा। एक ही बात कही कि अहिंसा परम धर्म है। इस अर्थों में परम धर्म है, जो उसको ही साध ले तो शेष सब उसका अपने आप सध जाता है।
इस अहिंसा का जैन, हिंदू, मुसलमान से क्या वास्ता है? इस मैं को छोड़ने से हिंदू, मुसलमान, ईसाई का क्या वास्ता है? यह तो सार्वभूत, सार्वभौमिक, शाश्वत सत्य है। और धर्म का कोई सत्य किसी संप्रदाय के लिए नहीं है।
इसलिए कृपा करें, महावीर से खुद मुक्त हो जाएं और महावीर को अपने से मुक्त कर दें। न उन्हें संप्रदाय में बांधे, न उनके संप्रदाय में खुद बंधे। उनका कोई संप्रदाय नहीं है। अपने मैं को विलीन करें, अपने अहंकार को विलीन करें। और उसके माध्यम से अपनी हिंसा को छोड़ दें, अहिंसा को उपलब्ध हों। मैं की मृत्यु को पाएं। और तब आप पाएंगे, आप महावीर के हो गए। उस धर्म के हो गए, जो महावीर का है; उस धर्म के हो गए, जो सब महावीरों का है। वे महावीर चाहे क्राइस्ट के रूप में कहीं पैदा हुए हों, चाहे कृष्ण के रूप में पैदा हुए हों, चाहे आपके रूप में कल पैदा हो जाएं।
___ कुछ थोड़ी सी बातें आपके संबंध में कहीं, कुछ थोड़ी सी बातें महावीर के संबंध में कहीं। अंत में एक बात और आपसे कह दूं। जो मैंने कहा कि प्यास नहीं है, उस प्यास को अगर नहीं जगाते हैं, तो अपने जीवन को व्यर्थ खो देंगे। लेकिन प्यास को कैसे जगाएंगे?
प्यास जगती है जीवन के अनुभव से। चारों तरफ आंख खोल कर देखें-क्या हो रहा है? जब रास्ते पर एक आदमी मर जाता है, उसकी अरथी निकलती है, तब आप उस अरथी को देखते हैं, लेकिन सोचते नहीं। जो देख कर रह जाता है, वह अरथी से जो संदेश मिल सकता था, उससे वंचित हो जाता है। जो उसे सोचता है जो उसे सोचेगा, वह थोड़ी देर में पाएगा, अरथी किसी और की नहीं, मेरी जा रही है। अगर कोई व्यक्ति सोचेगा तो पाएगा, अरथी किसी और की नहीं, मेरी जा रही है-दस दिन बाद सही, लेकिन अरथी मेरी जा रही है। और मैं जिस अरथी में कंधा दिए हूं-कंधा देते वक्त अगर कोई सोचेगा तो पता चलेगा, दूसरे उसकी अरथी को कंधा दे रहे हैं।
अगर हम आंख खोल कर अपने चारों तरफ देखें, तो यह संसार हमको धार्मिक बनाने को प्रतिक्षण तैयार है। अगर हम चारों तरफ व्याप्त दुख को देखें, अपने भीतर व्याप्त दुख को देखें, संसार में भागते हुए प्राणियों को चारों तरफ देखें, तो सब बदल जाएगा।
एक फकीर हुआ, वह फकीर एक गांव के बाहर एक झोपड़े में रहता था। किसी आदमी ने उस गांव के भीतर प्रवेश करते हुए उस फकीर को पूछा कि मैं बस्ती का रास्ता जानना चाहता हूं। उस फकीर ने कहा, अगर बस्ती का रास्ता जानना चाहते हो तो बाएं तरफ मुड़ जाओ, थोड़ी
14