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* महावीर जीवन प्रभा *
रुपये भेंट स्वरूप आये हुए स्वीकार किये- ग्यारहवें दिन दसोटन का जबरदस्त प्रीतिभोज दिया. अपने मित्रों को, ज्ञातिजनों को, गोत्रीय बंधुओं को, सम्बंधियो को दास-दासियों को, राज कर्मचारियों को और नागरिकों को निमन्त्रण दिया. आप उसमें शरीक तो न हुए पर जरा भोजन की बाहर सुनकर मन तो खुश करिये.
भोजन के लिये एक भारी सुन्दर मण्डप बनाया गया था, उसमें बैठने को आसन बिछाये गये, सामने चौकी पट्टे रखे गये, उन पर स्वर्ण-रजतादि के थाल पिरुसे गये. जीमने वाले कई फून्दाले, दून्दाले, झाक झमाले, गुबियाले, सुहाले, केशपास काले, मुंछाले, कइ जवांई कई शाले थे - वहाँ परोसने वाली हंसगति चालती, गजगति म्हालती, सोलह अँगार सज्जित, चन्द्रवदनी, देवाङ्गना समान सुन्दरियाँ थीं.
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भोजन में सीरा, लापसी, नानाविध लड्डु, घेवर, फीणी, दहिथरा, सक्करपारादि मिठाईयाँ थीं- खाजा, पुरी, अनेक तरह के चावल, सेव, भुजिया और मूँग, कैर, करमदा, नीला चणा, नीली मिर्च, सांगरी, काचरी, कारेलादि अनेक प्रकार के साग थे; कढी और रायता भी था - गरमागरम गाय का दूध, दही था
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