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* दीक्षा *
[७६ तेवीस तीर्थकर होगये; मगर उनको इतने कष्ट सहना न पड़े, यह अतिशयोक्ति नहीं है कि तमाम तीर्थंकरों के सम्मिलित उपसर्गों से भी आपके उपसर्गों की मात्रा बढ़ जाती है- देवों ने, मनुष्यों ने और पशुओं ने आपको तकलीफ देने में कोई कसर नहीं रक्खी, प्राणान्त-कष्ट पहुँचाने की भरसक चेष्टा की, संगम देव जैसे अभव्य जीव ने एक ही रात्री में वीस २० उपसर्ग करके अपने विवेक का दिवाला निकाला , इस तरह छः मास तक कष्ट पहुँचा कर अपनी नीचता का प्रदर्शन करया, शेष उपसर्ग कर्ताओं ने भी अपनी दुष्टता का संसार को परिचय करया , अपनी बुद्धि और कर्तव्यों को अस्ताचल पर भेज दिये, पराकाष्टा पर पहुँची हुई उनकी क्षुद्रता दिगन्त व्यापी है। इनके ये दुर्व्यवहार निन्दा करने योग्य-तिरस्कार योग्य और घृणा करने योग्य हैं, इनके जुल्मी अपराध अक्षम्य हैं, पर वाहरे वीर ! तू ही एक "महावीर" हुवा कि परम क्षमा से तमाम दुःखों को सहन किये , रंच मात्र भी हृदय न हिला, जरा भी उन पर दुर्भाव न हुवा, उनसे बदला लेने की किञ्चित् मात्र भी इच्छा न हुई, प्रत्युत उनका कल्याण चाहा, उनको सम्मति हो ऐसे विचार पैदा हुए; समता रस में झीलने लगे; कृतकों का कर्ज बड़े हर्ष से चुकाया- संसार को क्षमा ( Forbearance )
का पाठ पढ़ाया और यह बतलाया कि "मरना सीखोShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com