Book Title: Mahavir Jivan Prabha
Author(s): Anandsagar
Publisher: Anandsagar Gyanbhandar

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Page 166
________________ * अवशेष * [ १५३ अधिपति कुमार पाल नृपेन्द्र के प्रतिबोधक, कलिकाल सर्वज्ञ पद धारक. २१. जिनचन्द्रसूरि - जिनदत्त सूरीश्वर के पटधर, मणिधारी, दिल्ली आदि पूर्व देश में विख्यात. २२. आर्य रक्षितसूरि - परम वैराग्य रंगित, विधिपक्ष गच्छ ( आंचल गच्छ ) के संस्थापक. २३. जगच्चन्द्रसूरि-महातपस्वी तपागच्छ संस्थापक. २४. जिनकुशलसूरि- प्रत्यक्ष - प्रभावी, लाखों के उपास्य, बारह सौ साधु और चौवीस सौ साध्वियों के नायक, सिद्धाचल पर ' खरतरवसी के प्रतिष्ठा कर्ता, ५०००० नूतन जैन बनाने वाले दादा गुरुदेव . " २५. पार्श्व चन्द्रसूरि - अच्छे विद्वान, पायचंद गच्छ ( नागपुरी तपागच्छ ) के संस्थापक, आत्मार्थी. २६. जिनचन्द्रस्वरि- अखबर बादशाह प्रतिबोधक. जीव दया के पट्टे - परवाने कराने वाले, समर्थ युगप्रधान २७. राजेन्द्रसूरि - नामाङ्कित विद्वान्, उत्कर्ष क्रियावान्, राजेन्द्राभिधान कोषादि के कर्ता, त्रिस्तुति उद्धारक या संस्थापक. इनके अतिरिक्त बहुत शासन रत्न हुए, जिनका ज़िक्र स्थल संकोच से नहीं किया गया. आज भी बहुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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