Book Title: Mahavir Jivan Prabha
Author(s): Anandsagar
Publisher: Anandsagar Gyanbhandar

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Page 175
________________ १६२] * महावीर जीवन प्रभा * तीव्र तपस्या में प्रवृत्त थे, मैं शायंकाल को उनके पास गया और कहा- अहो निग्रन्थो ! तुम क्यों ऐसी घोर वेदना को सहन करते हो ? तब वे चोले- अहो निर्ग्रन्थ ! ज्ञातपुत्र ( भगवान् महावीर ) सर्वज्ञ और सर्वदेशी हैं, वे अशेष ज्ञान और दर्शन के ज्ञाता हैं, हमें चलते-फिरतेसोते-बैठते हमेशा उनका ध्यान रहता है . उनका उपदेश है कि- "हे निर्ग्रन्थो! तुमने पूर्व जन्म में जो पाप किये हैं, इस जन्म में छिपकर तपस्या द्वारा निर्जरा कर डालो, मन-वचन-काया की संवृति से नवीन पापों का आगमन रुक जाता है और तपस्या से पुराने कर्मों का नाश हो जाता है. कर्म के क्षय से दुःखों का क्षय होता है , दुःख क्षय से वेदना क्षय और वेदना क्षय से सब दुःखों की निर्जरा होजाती है." ___ महात्मा बुद्ध कहते हैं- निर्ग्रन्थों का यह कहना हमें रुचिकर हुवा और हमारे मन को अच्छा मालूम होता है . इससे यह स्पष्ट है कि भगवान् महावीर का उपदेश उनको हृदयगंम हुवा. [धर्म] धर्म शब्द सर्वत्र व्याप्त होने से व्यापक रूप है, पहिले यह समझ लिया जाय कि धर्म किसे कहते हैंShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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