Book Title: Mahavir Jivan Prabha
Author(s): Anandsagar
Publisher: Anandsagar Gyanbhandar

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Page 161
________________ १४८] ........ * महावीर जीवन प्रभा * प्रकाश-संचमुच ही भावना-भवनाशनी' का सिद्धान्त प्रश्नचन्द्र राजर्षि ने अक्षरशः चरितार्थ किया. नियत साफ रहने से बरकत होती है यह उक्ति तो चस्मदीद ही है, इस लिये बाह्य विषयों पर तूल न कर अन्तर विषयों पर लक्ष्य दीजिए, उच्च भावना अहिंसा और सत्य से उत्पन्न होती है। इन दोनों से आत्म गुण प्रकटाने की तालीम ( Training ) लेना चाहिए. (श्रावकोत्तम ) . भगवान् महावीर के करोड़ों उपासक थे उनमें एक लक्ष उनसाठ हजार व्रतधारी श्रावक थे, उनमें रत्न समान दस प्रतिमाधारी (तपयुक्त अनुष्ठान विशेष के धारक) आनन्द- कामदेवादि श्रावक हुए. करोडों रुपयों का द्रव्य जिसके घर में था. उन सब ने भगवन्त के पास गार्हस्थ्य धर्म अङ्गीकार किया था, विशिष्टता यह थी कि उनके घर पर ४०००० गोप्रमुख पशुधन विद्यमान था, श्रद्धामेंतपश्चरणमें और भक्तिमें पूर्ण थे, आनन्द-महाशतक को अवधि ज्ञान उत्पन्न होगया था, दसों ही वैमानिक देवलोक में उत्पन्न हुए, वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मुक्तिपद प्राप्त करेंगे; समस्त एकावतारी हुए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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