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* महावीर जीवन प्रभा *
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वन्त विराजते हैं, तीनों तरफ तदाकार जिन-बिंब रक्खे जाते हैं, छत्रत्रय मस्तक पर शोभते हैं, पीठ पीछे भामण्डल रहता है, चामर युगल दोनों तरफ बींजे जाते हैं, अष्ट मांगलिक रचे जाते हैं, अशोक वृक्ष की शाया रहती है, एक हज़ार योजन उंचा रत्न जड़ित इन्द्रध्वज फहराता गढ़ के दरवाजों पर तोरण लगे रहते हैं, ध्वजाएँ लहरातीं हैं, द्वादश पर्षदा ( चार प्रकार के देव - चार प्रकार की देवियाँ, पुरुष - स्त्रियाँ, तिर्यंच - तिर्यंचनियाँ ) धर्मदेशना श्रवण करने आतीं हैं, देव-देवियाँ गीतगान, नृत्यादि से प्रभु भक्ति करती हैं- राज दरबार के माफिक सब की बैठकों के वर्ग बने रहते हैं, कई खडे और कई बैठे सुनते हैं; समवसरण की रचना तो देखने से ही आनन्द आता है, मुख से पूरा वर्णन नहीं होसकता और कलम से आलेखा नहीं जाता.
प्रकाश - अनन्त पुण्य की राशी जब उदय होती है, तब उसके लिए समवसरण रचा जाता है, सामान्य केवलियों के लिये भी समय पर मात्र स्वर्ण कमल रचा जाता है. अनुष्ठान करके आदमी थक जाता है, माला फिराफिरा कर उंगुलियाँ घिस जातीं हैं तो भी एक देव प्रकट होना कठिन है तो असंख्य देव देवियों का आना कितनी तीव्र - पुण्याई का कारण है, तीन लोक में तीर्थंकर देव
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