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* महावीर जीवन प्रभा *
पूरी कर नामादि अघातिक कर्म नाश कर, मध्य पावापुरी नगरी के अन्दर हस्तिपाल राजा की राज सभा में पीछली रात्री के समय पद्मासन से विराज कर उत्तराध्ययनादि का अधिकार अन्तिम देशना में फरमाया, बाद तत्काल ही चन्द्र नाम के दूसरे सम्वत्सर में, प्रीतिवर्धन मास में, नन्दीवर्धन पक्ष में, अग्निवेष दिवस में, देवानन्दा रात्री में, अर्घ्य लव में, प्राण मुहूर्त में, सिद्ध स्तोक में, नाग करण में, सर्वार्थ सिद्ध मुहूर्त में, स्वाति नक्षत्र के चन्द्र योग का संयोग होने पर कार्तिक कृष्णा अमावश्या की रात्री में परमात्मा महावीर देव भव स्थिति-कायस्थिति छोड़ कर मोक्ष पधार गये, संसार में अब वापस नहीं आयेंगे; जन्मजरा-मृत्यु; आधि-व्याधि-उपाधि से सर्वथा मुक्त होकर अनन्त सुखों में लीन होगये- सुरेन्द्रों ने और असंख्य देवदेवियों ने भगवन्त के पवित्र शरीर का चन्दनादि सौगधिक काष्ट से अग्नि संस्कार किया, उसकी रक्षा और अस्थियाँ क्षीर समुद्र में बहादी-इन्द्रादि को भारी दुःख हुवा नन्दीश्वर पर अष्टान्हिक महोत्सव कर सर्व वापस चलेगए, इसही दिन से संसार में दीपावली' पर्व प्रवृत्त हुवा, जो आज तक झगमगाट करता है.
प्रकाश-जगत् के उद्धारक. विश्वतारणहार, जगच्छरण, दिव्यज्ञानी, जगदाधार, जगदीश्वर के मोक्ष पधार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com