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* अवशेष *
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भावना जागृत हुई; जब देखा कि मृत्यु से अब बचने की जरा भी आशा नहीं है तब बीमारी के कारण आये हुवे अपने शिष्यों को इस प्रकार अन्तिम आदेश किया
महानुभावो! अब मेरा जीवन काल खत्म हो रहा है, मेरी एक अन्तिम इच्छा तुम पूरी करो! सब ने नतमस्तक होकर स्वीकृति दी, धर्म गुरु ने कहा- मेरी मृत्यु के पीछे तुम मेरी दोनों टंगडियों में रस्सी बाँध कर खींचते हुए तमाम चोहट्टों में घुमाना और यह घोषणा करते जाना कि "भगवान महावीर के निन्दक गोशाला ने झूठा धर्म फैलाया, इसलिए सब लोग महावीर के शासन में चले जाओ, तुम भी सब संघ भगवान् के शरण में चले जाना."
यह सुन कर शिष्य मण्डल चकित होगया, सब ने प्रार्थना की कि आप तीर्थकर देव हैं- सर्वज्ञ हैं-जिन भगवान् हैं ! आप यह क्या फरमाते हैं ? गौशालक ने कहा- मैं तो एक सामान्य धर्माचार्य हूँ, यह सब ढोंग था, जनता को बहकाने का एक मायामय मार्ग था, मुझ से अब ज्यादा बोला नहीं जाता, मेरी आज्ञा का पालन करना; सबने उन को शान्ति पहुँचाने के लिये स्वीकार करलिया. गौशालक का देहावसान होगया, लज्जा के खातिर उपाश्रय में ही शहर की कल्पना कर उनकी आज्ञा का पालन किया
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