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* अवशेष *
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पूर्व की भारी कमाई का यह प्रभाव था- कुछ कमाई आप भी करिये कि क्रमशः वे दिन नजदीक आवे.
४. गौतम में क्या अनन्य गुरु भक्ति थी कि उसके लिये कैवल्य को भी ठुकरा दिया और चरण सेवा की इच्छा प्रकट की- आज के गुरुभक्त तो बड़े विचित्र हैंस्वार्थ सधा तो मस्तक नीचा नहीं तो बद्दलों से बातें करें, दम्भमय भक्ति निकृष्ट और अनाचरणीय होती है . गुरु भक्तो ! गौतम स्वामी के जीवन से बोध लेकर सच्चे भक्त बनो.
५. देव-गुरु-धर्म पर जो निस्वार्थ प्रेम होता है उसे 'प्रशस्तराग' कहते हैं गौतम इस ही गग से रंजित होकर विरहावस्था में कल्पान्त करने लगे थे; इस तरह वर्तमान में मुनिजन भी उपकारी के विरह में क्लामित हो जाते हैं; यह एक छानस्थिक भुक्तामन है.
६. गौतम भगवान ने अन्त में जीवन को बदल कर नैश्वयिक तत्व में प्रवेश किया और आखिर कैवल्य प्राप्त कर लिया- आप भी इस तरह निष्कर्ष ग्रहण कर केवल ज्ञान को समीप करिये.
७. शासन सेवा करके गौतम गणधर ने अपना अमर नाम किया, इस तरह आप भी करिये- कमाने,
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