Book Title: Mahavir Jivan Prabha
Author(s): Anandsagar
Publisher: Anandsagar Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 155
________________ १५२] * महावीर जीवन प्रभा * खाने में और मौज मजा उड़ाने में किसी का नाम रहा न रहेगा, सेवा धर्म एक प्रधान धर्म है, सेवक ही स्वामी बनता है। इसके लिए प्राचीन और अर्वाचीन (Ancient and Modern) बहुतरे उदाहरण विद्यमान हैं, आप भी सेवा कर उस आदर्श लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवाईये. ( गौशालक का आत्म पश्चाताप ) चरित्र में आप को गौशालक का परिचय हो चुका है, उसने जिन्दगी भर भगवान् महावीर का विरोध किया और पेट भर निन्दा की तथा कष्ट पहुँचाये, उसने अपनी समझ में कोई कसर नहीं रक्खी, परन्तु भगवान् रूप पार्श्वमणि के सम्पर्क का असर नहीं जा सकता, अन्त में गौशाला लोहे से स्वर्ण बनगया एकदा गौशालक बीमार पड़ा, जीवन काल की आशा न रही, अपने जीवन को मनन पूर्वक विचारा, आत्मा के साथ खूब परामर्श किया, भगवान् का धर्म सत्य मालूम हुवा, अपनी त्रुटि का भान हुवा, संघर्ष प्रयत्न का खेद हुवा, आत्म-पश्चाताप (Soul-repentance ) में लीन होकर कर्मों से हलका हुवा, महावीर प्रभु पर अकाट्य श्रद्धा उत्पन्न हुई, "जीवन रहे तो उनसे माफी माँग कर मेरा सारा समाज उनके पदार्विन्दों में समर्पण करूँ" ऐसी उत्तम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180