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* अवशेष *
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कहीं रेखा भी नजर नहीं आती थी, समय पर भगवान् से निर्णय करके अवधि-ज्ञान सम्बंधि अपनी भूल का आनन्द श्रावक के घर पर जाकर 'मिछामि दुक्कड' मिथ्या दुष्कृत दे आये- इसका विवरण उपासक दशाङ्ग सूत्र में है.
३. कैवल्य दान- गौतम स्वामी जिन जिन को दीक्षा देते थे उन सब को केवल ज्ञान उत्पन्न हो जाता था.
४. गुरु भक्ति- भगवान् को एक मर्तवा यह पूछाप्रभो ! इन नूतन दीक्षितों को कैवल्य उत्पन्न हो जाता है
और मुझे क्यों नहीं होता ? उत्तर मिला- तुम मुझ से मोह छोड़ दो तो अभी कैवल्य प्रकट होजाय गौतम ने कहाभगवन् ! मुझे केवल नहीं चाहिये, मेरे तो आप के चरणों की भक्ति बनी रहो, इस ही में मेरा परम कल्याण है.
५. प्रशस्त राग-महावीर देव मोक्ष पधारे उस दिन गौतम स्वामी को निकटवर्ती एक गांव में देव शम्मा ब्राह्मण को बोध देने भेज दिये थे, उस ही रात को प्रभु मोक्ष पधार गये, देवों के आगमन से उन्हें पता चला, ज्ञात होते ही वज्रघात की तरह दुःखी हुवे, उनके हृदय में विरहामि सिलग गई, भारी विलापात करने लगे, भगवान्
को काफी उलहने दिए और एकतास रुदन करने लगे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com