Book Title: Mahavir Jivan Prabha
Author(s): Anandsagar
Publisher: Anandsagar Gyanbhandar

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Page 146
________________ * मोक्ष * [१३३ भावार्थ- वीर भगवान् इन्द्र को फरमाते हैं- आगे की एक घड़ी भी प्राप्त नहीं हो सकती; ऐसा समझ कर शरीर रहे वहाँ तक मनुष्य को धर्म करना चाहिये. प्रकाश-जो संसार व्यवहार से परे होगये हैं, जिन को अपना और पर का कुछ नहीं है, जिनने लोकेषणा को जलाञ्जली देदी है। ऐसे ब्रह्मज्ञानी भगवान महावीर शासन और अन्य की क्यों फिक्र करने लगे? उनका नसीब उन के साथ; हमें अपना करना चाहिए; उत्सर्ग मार्गी ऐसा ही करते हैं और वह उन के लिए सर्वथा योग्य और इष्ट है अपन को भी उसही रास्ते चलना होगा तब ही तो मोक्ष निकट आवेगा- अशुभ व्यवहार से शुभ व्यवहार और फिर शुद्ध व्यवहार पालन कर आत्मिक दशा में पहूँचा जाता है। इसलिये इस क्रम से अपन सब को चलना चाहिएपाप कर्म अशुभ व्यवहार, पुण्य कर्म शुभ व्यवहार, निर्जरा कर्म शुद्ध व्यवहार और फिर प्रकाशपिण्ड में मन, आत्मिक दशा कही जाती है. (निर्वाण) भगवान महावीर ३० वर्ष गृहस्थाश्रम में रहे, कुछ अधिक १२ वर्ष छद्मस्था वस्था में रहे और कुछ कम ३० वर्ष कैवल्य पर्याय में विराजित रहे . कुल ७२ वर्ष की उम्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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