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* महावीर जीवन प्रभा*
यथार्थ कथन से वह कुपित होगया-" उपदेशोहि मूर्खाणां। प्रकोपाय न शान्तये" यानी मूखों को उपदेश देना कोप का कारण होता है , पर शान्ति उत्पन्न नहीं होती- और तुरन्त ही भगवान पर तेजोलेश्या फैंकी, उसकी ज्वाला से भगवन्त को छः महिने तक रक्तातिसार की व्याधि रही. यह अघटित घटना आश्चर्य (अच्छेरक) में शुमार है . इस का पूर्ण वर्णन भगवती सूत्र के १५ वें शतक में है .
प्रकाश-क्षुद्रता की भी हद्द होती है , गोशालक की अभद्रता जगनिंदनीय है ; तीर्थकर पद का ढोंग करने वाला कैसे अवाँच्छनीय काम करता है, किसी को तक. लिफ देना भी हिंसा है तो दो साधुओं को भस्म कर देना, परमात्मा को कष्ट पहुँचौना क्या कम नीचता है ? ऐसे छोटे-बड़े गोशालक आज भी संसार में मौजूद हैं, संयमी होकर भी अक्षम्य जुल्म गुजारते हैं. धन्य तो है उन मुनि वरों को, जिसने गुरु महाराज के लिए अपना बलिदान दे. दिया, आज के भक्त तो मुंह ताकते ही रहें और अन्दर से सुकुड़ते ही रहें , पर अलिफ से वे ( क से ख ) बोल नहीं सकते; यह चूर्णित-बुद्धि का प्रभाव है. क्या आप उन दो महा विभूति मुनिवरों के कर्तव्य से कुछ ग्रहण करंगे ? कि अपने ही में मस्त बने रहेंगे ? जरा कर्तव्य लाइन को सुधार कर योग्यता प्राप्त करिये .
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