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* कैवल्य *
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साध्धियाँ और लाखों श्रावक-श्राविकाएँ बनाकर धर्म-पथ में प्रवृत्त किये. आपकी इसही ओजस्विनी धर्म-देशना ने ४०००००००० चालीस करोड़ जैन बनाये यानी अहिंसा धर्म के अनुगामी बनाये और सत्य-धर्म के तरुवर की शीतल छाया में उन्हे आनन्द से बैठा दिये.
प्रकाश-संसार में सबसे बड़ा उपकार धर्म-प्रवचन से ही हो सकता है ; तप-जप, क्रियाकाण्ड, सेवा-पूजा व्रत-नियम और समस्त हितैषी कार्य शास्त्र-श्रवण से ही चरितार्थ और फलितार्थ होते हैं; अतः यह सर्व शिरोमणि है और प्रथम ग्राह्य है. आज कल के त्यागी महात्मा की देशना भी निवृत्ति के सन्मुख कर देती है, शान्ति-संतोष की चाहना उत्पन्न करती है। यहाँ तक कि काया पलट की तरह जीवन बदला देती है, तो भगवन्त की देशना का तो कहना ही क्या ? उस में तो अलौकिक प्रकाश है, शीतलता है, विश्राम है और आनन्द है- परमात्मा व्रतनियम या दीक्षा-शिक्षा के लिए किसी को अनुरोध नहीं करते थे, फरमाते तक नहीं थे- वे तो अपने उपदेश में वस्तुस्थिति ऐसे ढंग से समझाते कि श्रोताजन स्वयं तैयार होकर व्रतादि की याचना कर लेते और उसे ग्रहण कर जीवन पर्यन्त निर्दोष पालन करते थे; यह उत्तम तरीका
था- आज कल तो कहन-सुन कर, दबान कर, बहका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com