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* महावीर जीवन प्रभा * देशना कभी खाली नहीं जासकती; पर इसका मुख्य कारण यह था कि मात्र देवों की आठ पर्षदा ही उपस्थित थी और वे अवती होने से व्रत-नियम ग्रहण करने में असमर्थ रहते हैं- आज कल की धर्म देशना तो खाली है कि भरी है इसकी कोई पर्वाह नहीं करता, कर्तव्य अदा करना ही मानो उद्देश्य होगया है और कइयक लोकेषणा के पूजकों ने तो केवल लोक-रंजन ही देशना का ध्येय बना लिया है; उसही के पीछे दौड़ लगाते रहते हैं और जीवन की सार्थकता मानते हैं : पर ऐसा होना युक्त नहीं, महावीर के आदश तत्वों को समझाकर दुनिया पर उपकार करना चाहिये ; ऐसा मेरा नम्र अभिप्राय (Opinion ) है.
( सुन्दर प्रसंग)
असंख्य देवों से सेवित भगवान महावीर देव वहाँ से विहार कर उपकारार्थ ' अपापा ' नगरी में पधारे, महासेन नामक वन में पूर्ववत् देवों ने समवसरण की रचना की; भगवन्त पूर्व द्वार से प्रवेश कर ' तीथायनमः ' कह कर सुवर्ण सिंहासन पर पूर्वाभिमुख विराजे, असंख्य देवदेवी, पुरुष-स्त्रियाँ और पशुओं का भारी तादद में आगमन हुवा ; परमात्मा ने भवदुःख हारिणी, परमसुख कारिणी,
ज्ञानसरिता वैराग्य-वाहिनी सजल मेघ-गर्जारव तुल्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com