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* महावीर जीवन प्रभा *
करो और आत्महित साधो; यह हमारा खास सुझाव ( Suggestion ) है.
( छद्मस्थ कालीन चतुर्मास )
केवल ज्ञान के पूर्व भगवन्त ने बारह चतुर्मास किये; उनका संक्षिप्त विवरण यहाँ बता दिया जाता है
१- पहिला चौमासा भगवन्त ने दुइजन्त तापस के आश्रम में किया, वहाँ वस्ती-मालिक की अप्रीति के कारण पन्द्रह दिन शेष रहने पर ही विहार करगये.
वहाँ से विहार कर मोराक सनिवेष पधारे, उद्यान में कायोत्सर्ग ध्यान रहे, यहाँ भगवान् की महिमा बढाने के लिये सिद्धार्थ देव भगवन्त के शरीर में प्रवेश कर भूतभविष्य की बातें बताने लगा, इससे लोग स्वामी की सेवा में मशगूल हुए, वहाँ के निवासी अच्छन्दक नामक निमित्तिया ने इर्ष्यावश एक घास की सलाका लेकर पूछाअहो आर्य ! यह तृण टूटेगा कि नहीं, देव ने इन्कार किया, वह तोड़ने लगा कि उसकी उंगुलिये स्तम्भित हो गई, तब सिद्धार्थ ने जाहिर किया कि यह अच्छन्दक चौर है , हत्यारा है और भगनी-मोगी है ; इत्यादि . यह नग्न सत्य सुन कर निमित्तिया घबड़ाया, भगवान् को प्रा
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