________________
१०२]
* महावीर जीवन प्रभा *
दी जाती है, सुखशीलता का यह परिणाम है कि अमुक देशों को और प्रदेशों को छोड़ते नहीं, खान-पान और रहन-सहन की घबड़ाहट से अपने सर्कल को नहीं छोड़ते, यह अमाप कमजोरी है और अनासक्ति का अनादर है . पहिले के मुनिजन स्वयं ही विना विनंति चौमासा कर लेते थे और वहाँ का संघ बड़े आदर से उनकी भक्ति करता था
और यथाशक्ति जिन शासन की उन्नति करता था. आज ऐसा क्यों नहीं बनता ? तो इसके लिए यह स्पष्ट ही है कि विना विनंति के रहने से कोई पूछता नहीं, कोई जिम्मेवार नहीं; कारण कि संघ व्यवस्था नहीं. अगर किसी को कुछ कहा जाय तो रोकड़ा जबाब तैयार रहता है कि आपको किसने विनंति की थी-मुंह फट हो तो यह भी कह दे कि किसने पीले चांवल भेजे थे- आप अपने गर्ज से रहे हो, इसलिए विनंति विना रहना यह तो कठिन है, यहाँ तक तो जमाने के लिहाज से ठीक है कि विनंति से रहना; पर यह रहना कहाँ तक उचित है कि इतने . हजार आदि रू. खर्चों तो हम चोमासा करें, तुमारी आमदनी के तमाम रू. हम ज्ञानादि फण्ड में लेलेंगे; जनता इसको तुच्छता और पामरता कहती है। इससे बचने की जरूरत है. पूज्य मुनिजनों को तो हृदय में यह भावना रखना चाहिए कि कष्ट उठाकर भी उपकार करना संयम
की सार्थकता है। जिसमें भी मुमुक्षों की तरफ ज्यादा ध्यान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com