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* महावीर जीवन प्रभा *
परमात्मा अष्ट प्रवचन माता का उत्कृष्ट रूप से पालन करते थे, इन्द्रिय-विषयों पर विजय प्राप्त कर लिया था, नौ बाड़ से ब्रह्मचर्य की पूर्णतः रक्षा करते थे, क्रोधादि कषायों के परिहार से परमात्मा सदा शान्त-उपशान्त और प्रशान्त थे, प्रत्येक पौद्गलिक पदार्थों की आसक्ति से अनासक्त थे; संसार संयोगों से 'शंख रंगवत् ' निर्लेप थे और 'कमल जलवत' निराले थे. उनका विहार जीवगति के समान और पवन वेग की तरह स्वतन्त्र था, आकाश के मुवाफिक स्वाश्रित थे, किसी आधार-सहायता आदि को स्वम में भी नहीं इच्छते थे, पक्के स्वावलम्बी थे. बाइस परिसहों को सिंह की तरह सहन करते थे, जगदाधार भगवान् सूर्य समान तेजस्वी, चन्द्र समान सौम्य , कछुए जैसे गुप्तेन्द्रिय , भारण्ड पक्षी सदृश अप्रमत्त हस्ति तुल्य पराक्रमी, वृषभ समान संयम भार निर्वाहक, मेरुपर्वतवत् अकम्प, पृथ्वी समान सहनशील और शरत् कालीन जल के सदृश निर्मल हृदयी थे.
देवाधिदेव वर्षाकाल के सिवा आठ मास पर्यन्त गांव में एक दिन, नगर में पांच दिन विराजते थे, तृण-मणि, स्वर्ण-पाषाण और पजक-निन्दक को समान गिनते थे, ऐहिक और पारलौकिक सुख दुःख को अमिन मानते थे, जीवन-मरण को बराबर समझते थे, सर्वोत्कृष्ट चार ज्ञान
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