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* महावीर जीवन प्रभा*
(११) शय्या-पालक का जीव गोपालक का उपसर्ग वासुदेव के भव में आज्ञा भंग के कारण कान में सीसा डलवाया था, वह शय्यापालक मर कर गोपालक हुवा, पूर्व भव के वैर से यहाँ भगवान् के कानों में शर्करावृक्ष की लकड़ी के कीले ठोक दिये, और उपर से काट दिये ताकि एकायक दिख न सके- पापा नगरी में सिद्धार्थ वणिक के यहाँ मालूम होने से खरक वैद्य ने सण्डासी द्वारा कीले निकाले; इस वक्त भगवन्त को शारीरिक इतनी वेदना हुई के सहसा चीख निकल गई, संरोहणी ओषध से प्रभु के कानों को निरामय किये. वैद्य काल कर पाँचवें देवलोक में गया और गवालिया सातवीं नरक में गया.
___ उपर्युक्त उपसर्गों में से कटपूतना कृत जघन्योपसर्ग हुवा, हज़ार भार गोले का मध्यम उपसर्ग हुवा और कानों में कीलों का उत्कृष्ट उपसर्ग हुवा; शेष सर्व सामान्य उपसर्ग हुवे- खास खास उपसर्गों का यहाँ उल्लेख किया गया है, बाकी छोटे छोटे तो अनेक उपसर्ग हुवे होंगे.
प्रकाश- भगवान महावीर के उपसर्गों का विवरण तो आपने ऊपर बाँचा ही है. कष्ट की भी आखिर सीमा होती है, शान्ति का भी मौका मिलता है। पर जगत्पूज्य के सीमातीत दुःखों का प्रकरण अजोड़ है, आपसे पूर्व
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