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* महावीर जीवन प्रभा *
इस अवसर पर मंजुल-भाषिणी दासी ने महाराजा सिद्धार्थ को पुत्ररत्न की बधाई दी, हर्षित होकर नृपेन्द्र ने उसे भारी इनाम दिया और अन्तःपुर में उसे दासी मण्डल की महत्तरा बनाई .
प्रातःकाल होते ही महाराजा ने आदेशी पुरुषों को इस प्रकार आदेश दिया- शीघ्र ही अपने नगर के तमाम रास्ते स्वच्छ कराओ, कारागृहों में से कैदियों को मुक्त, कराओ, रस कस और धान्य के माप तथा शेर-मन आदि का तौल तथा वस्त्रों के नापने के गजों का नाप बढाओ, नगर के बाहिर और अन्दर सुगन्धित जल का छिटकाव कराओ, बाजारों को अच्छी तरह सजाओ, नाटक देखने को मंच तैयार कराओ, पुष्पों को विस्तिर्ण करो, कुंकुम चन्दनादि के भीतों पर हस्त-छा लगाओ, घरों के चौक में मंगल घटों की स्थापना कराओ, दरवाजों पर तोरण बंधाओ, स्थान-स्थान पर पुष्पमालाओं लटकाओ और सारे नगर को दशांगधूप से सुगन्धित कर दो.
एवं नट , नर्तक, नटवे , मल्ल, विदुषक, भाण्ड, कथक्कड़, रासलीलावाले, ऊँट-हाथी पर से कूदने वाले, तैरने वाले, भाट, कवि, निमित्तिये, चित्रपटदर्शक, बाँसुरी और वीणा बजाने वाले ; इन सब को बुलाकर स्थान स्थान पर स्थापन करो- गीत, गान, नृत्य , वाजिन्त्र,
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