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-१८. ११.४]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित णिपडियारट णिरइंकारस भूसणहरु अहमिदभडार। णियवासहु वासंतरु ण सरह उत्तरवेउन्वित वन ण करई । सीहासणि सुपिसण्णज अच्छइ सोहि तिजगणाडि संपेच्छइ । लेइ मणेण भक्खु छुह णासहि सो तेसीसहिं वरिससहासहि । णिग्गयदइयधवणणिहदुक्खहिं णीस सेइ तेन्सियहिं जि पक्खहिं । छम्मासाउसु वहई अझ्यह सोहम्मिद जाणिव तइयहु । सो अहमैमराहिउ आवेसई जियसत्तहि धरि जिणवरु होस । इम चितेवि भणित जवाहिर धरणीगयणिहाणलक्खाहिर । जंबदीवभरहउज्झाउरि
धणय कणयमयणिलयेण लहु करि । घत्ताता गयरि कुबेरै णिम्मविय कंधणभवणविसेसहि ॥
सरिसरवरसेववणजिणहरहिं पहचचरविण्णासहि ॥१०||
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आयत देविट इंदाएस
पुरवरु माणवमाणिणिवेसे । सिरिहिरिदिहिमइकतीकित्तिउ विजयादेविहि सेव करंतिउ । तणुसंसोहणगुणसंजोयहि थक्कर णाणाविहिहिं विणोहिं ।
गभि ण यंतहु अमरवरिहर घसुधारहि. वइसवणु वरिट्टल। से रहित और निरहंकार, भूषण धारण करनेवाला आदरणीय अहमेन्द्र । वह अपने निवासविमानसे दूसरे विमानमें नहीं जाता । उसका शरीर प्रतिशरीर उत्पन्न नहीं करता। वह अपने सिंहासनपर स्थित रहता । अवधिज्ञानसे वह तीनों लोकोंकी नाड़ोको देखता, वह भूख नष्ट करनेके लिए तैंतीस हजार वर्षमें मनसे आहार ग्रहण करता और धमनीके समान दुःखसे रहित तेतीस पक्षों एक बार श्वास लेता। जब उसकी छह माह आयु शेष रह जाती है तब सौधर्म स्वगंके इन्द्रके द्वारा जान ली गयी। वह अहमेन्द्रराज आयेगा और जितशत्रुके घर जिनवर होगा। यह विचारकर ( इन्द्रने ) परतीपर स्थित लाखों निधानोंके स्वामी कुबेरसे कहा, 'हे धनद, जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रकी अयोध्यानगरीमें स्वर्णमय प्रासादका निर्माण करो।'
पत्ता-तब कुबेरने नगरीका विशेष कंचन भवनों, नदियों, सरोवरों, उपवनों, जिनधरों, पथों और चत्वरोंकी रचनाओंसे निर्माण कर दिया ॥१०॥
इन्द्र के आदेशसे मानवोंकी मानदियोंके वेश देवियां नगरवरमें आयीं। श्री, हो, ति, कान्ति, कीर्ति और विजयदेवो सेवा करने लगीं। शरीरके संशोधनों और गुणों के उत्पादनों भोर नाना प्रकारके विनोदों के साथ वे स्थित हो गयौं । उनके गर्भ में स्थित नहीं होते हुए भी अमर श्रेष्ठ
६. AP महमिदु । ७. P भिक्खु । ८, A तेतीसहि । २. दयिषवर्ण । १०. P adds dि after गोससे।। ११. A P वड्डइ । १२ A P सो लह अमराहिउ । १३. A P आएसइ । १४. A अंदोबे भरहे उज्ज्ञाP जंबूभरहदीउ उज्मा । १५. P"णिलबह लह । १६. P जिणहरउववणेहि ।
१७. A भइरमणीयपएसहि। ११.१. P पाउ । २. P संजीवहि । ३. Pणाणविहिहिं । ४. A गम्भेच्छन; P यमि ण छंठ ।