Book Title: Maa Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan View full book textPage 7
________________ ( ख ) भी लोक-ज्ञात हैं। परन्तु इस कथन के सामने सबकी द्य ति मन्द रही है कि "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि" जन्मभूमि से भी पूर्व जननी नाम दिया गया है। क्योंकि जन्मभूमि के दर्शन का माध्यम भी तो वही है। नारी की भूमिका कितनी विचित्र है कि वह माँ, पुत्री और बहन के रूपों के अतिरिक्त अन्य सभी रूपों में नर को नचा देती है। और बहन के रूप से भी बढ़कर माँ के रूप में वह सब को दूरितों से बचा देती है। __मातृ शक्ति के सम्बन्ध में भारतीय साहित्य में "माता पृथ्वीः पुत्रोऽहं पृथिव्याः" की चर्चा सर्वविश्रुत है। वस्तुतः माँ और धरती का आकार एक ही है। भारत में मात सत्ता की प्रधानता युगों तक प्रचलित रही। क्या विचित्र गति-मति है कि विश्व के महान् से महियान् और अणोरपणीयान् पदार्थों का जन्म मातृ शक्ति के आधार से ही होता है। मैं अपनी बात कहने के लिए पुनः इस पुस्तक की ओर लौट रहा हूँ, ऐसा इसलिए कि भारत की धरती में इस गये-बीते युग में भी ऐसे विचारक उभर रहे हैं, जिन्हें मातृत्व की अदम्य अगाध शक्ति के प्रति आस्था है। यह भौतिकवादी वैज्ञानिक, वैलासिक-राजनीतिक पद-लोभ के आकर्षणों से समाक्रांत वातावरण और एक युवा विचारक की दृष्टि “मातृ सेवी भव" की ओर आकृष्ट हो गई हैं—यह भारतीय जीवन की श्रद्धा और निष्ठा का सूर्योदय है। एक पालोचक के नाते भी कह तो दिन-रात कड़ा-कर्कट लिखने वालों से यह 'माँ' रचना कहीं अधिक कल्याणी स्थायी निधि है। इसे पढ़कर कतिपय व्यक्तियों का भी जीवन परिवर्तन हो गया तो रचना की सफलता का प्रमाण असंदिग्ध हो ही जायेगा। सहज-भाव से शब्दबद्ध यह रचना पाठकों को पढ़ने के लिए आकृष्ट करेगी और यदि इसका अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेन्च, रूसी आदि भाषाओं में हो गया तो इसकी लोकप्रियता की सीमाएँ विस्तत हो जायेंगी। मैंने "भूमिका" न लिखकर "अभिनंदन" शब्द इसीलिए लिखा है कि युवा मुनि श्री चन्द्रप्रभ सागर जी से मेरा सम्बन्ध आध्यापक और अध्ययनशील विचारों के स्तर पर स्थापित हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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