Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 5
________________ दाहाडे रे एम करतां थयो रे, मांहोमांहे मेलाप ॥ लालच लागी रे अने लजा टली रे, थिर कस्यो मननो थाप ॥ म॥ ७ ॥तुं मुज स्वामी रे आत्मनो राजीयो रे, तुं मुज धननो नाथ ॥ कामे ते वाही रे कामसेना कहे रे, एक दिन काली हाथ॥ म ॥ ए॥ ह न आपुं रे जीव जातां लगे रे, तुं मुज जीवन प्राण ॥ पुरुष हवे बीजा रे महारे बांधव पिता रे, स्वामी तुं शेठ सुजाण ॥म ॥ १० ॥ जेम तुंराखे रे तेम रहुँ साहेबा रे, लोपुंन ताहरी लीह ॥ वांक जो दे रे तो विरचुं नहीं रे, आण वढं निशदिह ॥म ॥११॥ जगमां जेतां रे पातक नीपजे रे, तो लागे तेतां मुज ॥ लाख गुनेहि रे सांजल लामला रे, त्रिविध तजुं जो तुझा ॥ म ॥ १२ ॥ तुंव्यवहारी रे वर खांते कस्यो रे, न धरं धननो रे मोह ॥ जे हुँ बोर्बु रे ते मानजे रे, सत्य त्यजीने अंदोह ॥ म० ॥ १३॥ जमणे हाथे रे वचन आपुं अर्बु रे, हुं तुज दिलनी दास ॥ वीशे वसा रे थर हुं आजथी रे, विलसो जोग विलास ॥म॥ १४ ॥ हुँ गणिकाने रे कुले उपनी रे, पण मेव्यो कुलाचार ॥ ताहरे काजे रे तेम तरसी रही रे, जेम चातक जल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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