Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 6
________________ धार ॥ म॥१५॥ रढ श्म लागी रे मी रे, मोडं ते कुंअरनुं मन्न ॥ बीजी ढाले रे बड्यो ते सही रे, कहे कवि उदयरतन्न ॥ म ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥जिम सिंहण घेरे मृगने, तेम ते घेख्यो कुमार ॥ एक कर साही फालीनो, घाल्यो गलामा हार ॥१॥ करी केशरनां बांटणां, मस्तके घाख्यां फूल ॥ मग्न थयो महिला रसे, सुखनां देखी शूल ॥२॥ सांज पमी रवि आथम्यो, करतां बहुविध केल ॥ हवे हुँ जाऊं मंदिरे, कुमर कहे तेणी वेल ॥३॥ वेश्या कहे विलखी थर, रहोने वासो रात ॥ कुमर कहे हुँ केम रहं, वाट जवे माय तात ॥४॥ वाणे हं यावीश वही,कोल करीने तेह॥घरे पोतो तव घूमतो, घायल थश् गणनेह ॥५॥ माता थश् अलखामणी,तातनी न गमी वात॥मंदिर लागे मसाणशां, न गमे नगिनी जात ॥६॥ तव ते चित्तमां चिंतवे, वरजी घर व्यापार ॥ वसुंजश्वेश्याघरे, सफल करुं अवतार ॥७॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ श्मर आंबा आंबली रे, झर दामिम जाख ॥ ए देशी ॥ ॥श्म ते मन मांहे धरी रे, लेइ एकावली हार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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