Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(ए) धूतारी श्हां धूतवा, आवी जे निरधार ॥ एम कहीने गणिका गमंदिरमा तेणी वार॥॥सर्वगाथा॥१६॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ रामचंदके बाग, चांपो
मोरी रह्योरी ॥ ए देशी ॥ ॥ तव कहे शेठ सधीर, सांजल नारि सलूणी ॥ एणे मूखे लही चीर, दहीं तणी ए दोहणी ॥१॥ तो पामे मूल एह, जो तुंरहे वासो॥तजी हणुानो नेह, जोने महारो तमासो ॥२॥ घांचण उकी लोहार, मालण ने जरवामी॥मोचण नटवी सोनार, एहने कहो शी आमी॥३॥ अवश्य महियारीज, ए परगमे जो तमने॥तो महेली मन लाज, एकांते आदरो अमने॥४॥ दशको जो आपो दिनार, मनमोजे महेताजी ॥ तो वासानो विचार, करवा थक्ष ढुं राजी ॥५॥जले सरजी नरवाम, शेठ कहे सोजागी॥महेलो मननी गांठ,हवेलजा नांगी॥६॥ वियोग न वेठ्यो जाय, आज वसो मुज उरे॥मंदिरे ते न जवाय, राखीश हुं शहां जोरे॥७॥ठानी नली संसार, चोरी यारी ने चामी ॥ रखे लहे मुज नरतार, रखे लहे तुज घर लामी ॥७॥ करी कोलकरार, मांहोमांहे तेणी वेले ॥ महिने मिषे निरधार,
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