Book Title: Lilavati Rani ane Sumtivilasno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 35
________________ (३५) मंदिर हणुउँ नवि मले ॥ दारिद्य पूर वसंत, वेरण शहांनावे वली ॥४॥कूडो कलह न मांग, आहिरणी आंखो रोषणी ॥ बबिली केमो गंम, वेश्या ते वाही खरी ॥५॥ बागलथी हरी आथ, गणिका तें गहीली करी ॥ ढुं पण कीधो हाथ, हवे एहशुं कहो हठ किस्यो ॥ ६॥ आज मोतीडे मेह, वूग मुज आंगण वली ॥ आज मुज हर्ष अबेह, आज रवि कंचन उगीयो ॥ ७॥ आज नवला नेह, आज सुरंग वधामणां ॥ नावठ नांगी जेह, आशा आज सफल फली ॥७॥ सर्व गाथा ॥ २१॥ ॥ढाल सत्तरमी॥पहेलो ने पासो हो जी॥ए देशी ॥ ॥ पूडे सलूणी हो जी, तमे परण्या अबो जी,के बगे कुंयारा स्वामी साचुं कहो जी॥माय ने बाप हो जी, कहोने किहां वसे जी, खबर तेहनी क्यारे किसी लहो जी ॥१॥मावित्र माहारां हो जी, पवित्र पुण्यात्मा, एहीज पुरमा हो जी, वासो वसे अ जी ॥ पीयरे मेली हो जी, प्रेमदा परणीने, तेहनी मुजने रे शुद्धि किसी न जी॥॥तुज सम उंची होजी, तुज सम शोजती, ताहारा जेवो रे वान ने देहनो जी॥ मुखनी बत्रीशी हो जी, लटकुं हाथ, ताहारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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